Wednesday, June 18, 2014

क्या वाकई हम तैयार हैं ?

क्या वाकई हम तैयार हैं ..??

बहावी विचारधारा वाले सुन्नी संगठन ISIS आधे इराक पर कब्जा जमा लिया। अपनी अदभुत छापामार युद्ध प्रणाली की वजह से इराकी सेना को हराने वाले इन कट्टरपंथियों का इराक अभियान कोई जोश में उठाया कदम नहीं है। ध्यान देने वाली बातें यह हैं कि कट्टरपंथियों के अति-आधुनिक हथियार और आपसी तारतम्यता व समझ यह सिद्ध करते हैं कि इस अभियान की तैयारी एक-दो दिन की नहीं महीनों की है। जिस तरीके से कट्टरपंथी उत्तरी इराक को जीतकर राजधानी बगदाद की ओर बढ़ रहे हैं वह साबित करता है कि यह पूर्व-सुनियोजित है।

एक बात और गौरतलब है कि सीरिया, इजिप्ट, सऊदी अरब, अफगानिस्तान और कई देशों से के सुन्नी कट्टरपंथी एक संगठन के झण्डे तले आ खड़े हुए हैं और इकठ्ठे हो रहे हैं... इन सबके बीच अगर किसी देश को अपनी सुरक्षा के लिए फ्रिकमन्द होना होगा तो वह भारत होगा क्यूँकि धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत हमेशा से ही इस्लामिक आतंकियों के निशाने
पर रहा है और हाल में ही अल-कायदा धमकी दे चुका है कि जल्द इराक जैसे काफिले भारत भेजे जायेंगे।

इराकी संकट से भारत को सबक सीखने की जरूर है। जहाँ तक भारतीय सेनाओं का प्रश्न है उनका छापामार युद्ध से आज तक पाला नहीं पड़ा और वो भी ऐसे से तो कभी नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने लिट्टों के प्रश्न पर पचास हजार सैनिक जाफना प्रायद्वीप में भेजे थे लेकिन लिट्टों की छापामार युद्ध तकनीक से भारतीय सेना को बहुत हानि उठानी पड़ी थी। यह बहावी सुन्नी कट्टरपंथी छापामार युद्ध में माहिर, अति-आधुनिक हथियारों से लैस हैं और धार्मिक रूप से जन्नत जाने को लालायित है। विचारणीय प्रश्न तो यह है कि हमारी सेनाएँ कितनी तैयार हैं?

अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तो इराकी महिलाओं और बच्चों तक ने हथियार उठा लिये है, अगर भारत में कभी ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तो हम तो वो भी नहीं उठा सकते। इराक में तो घर-घर में ऐके 47 और ACR मिल जायेंगी, जिन्हे वे बखूबी चलाना जानते हैं लेकिन हमारे यहाँ तो हथियार के नाम लाठियाँ, हाकियाँ और ज्यादा से ज्यादा देशी-तमन्चे ही मिल सकते है और रही बात हमारी पुलिस की तो वह इतनी सक्षम ही नहीं है कि एक उठाईगीरे को पकड़ ले, प्रशिक्षित आतंकियों को रोकना तो दूर की बात है।

देखा था ना 26/11 के हमले में तेरह हमलावरों के सामने भारत की तेज-तर्रार मुम्बई पुलिस घुटनों के बल रेंगती नजर आयी थी। पूरे दो दिन बाद सेना ने ही मोर्चा सम्भाला और आतंकियों को मार गिराया गया था। यही हमला अगर न्यूयार्क पर हुआ होता तो हमलावरों को अमेरिका की SWAT पुलिस ही मिनटों में धूल चटा चुकी होती, आर्मी तो दूर की बात है। हमारी पुलिस से बेहतर तो पाकिस्तान पुलिस है जिनको ट्रेनिंग आर्मी देती है और आतंकी हमले से लेकर बन्धकों को मुक्त करवाने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।

खैर भारत की सुरक्षा अब जिनके हाथों में उनको भारत की सुरक्षा को लेकर चिन्ता तो करनी ही चाहिए और साथ में भारतीय सेना से घरेलू पुलिस तक को आधुनिक बनाने की जरूरत है।भारत की सुरक्षा एकमात्र सेना की जिम्मेदारी नहीं है, इसके लिए इजरायल से सबक सीखने की जरूरत है।

क्या वाकई हम तैयार हैं ?

क्या वाकई हम तैयार हैं ..??

बहावी विचारधारा वाले सुन्नी संगठन ISIS आधे इराक पर कब्जा जमा लिया। अपनी अदभुत छापामार युद्ध प्रणाली की वजह से इराकी सेना को हराने वाले इन कट्टरपंथियों का इराक अभियान कोई जोश में उठाया कदम नहीं है। ध्यान देने वाली बातें यह हैं कि कट्टरपंथियों के अति-आधुनिक हथियार और आपसी तारतम्यता व समझ यह सिद्ध करते हैं कि इस अभियान की तैयारी एक-दो दिन की नहीं महीनों की है। जिस तरीके से कट्टरपंथी उत्तरी इराक को जीतकर राजधानी बगदाद की ओर बढ़ रहे हैं वह साबित करता है कि यह पूर्व-सुनियोजित है।

एक बात और गौरतलब है कि सीरिया, इजिप्ट, सऊदी अरब, अफगानिस्तान और कई देशों से के सुन्नी कट्टरपंथी एक संगठन के झण्डे तले आ खड़े हुए हैं और इकठ्ठे हो रहे हैं... इन सबके बीच अगर किसी देश को अपनी सुरक्षा के लिए फ्रिकमन्द होना होगा तो वह भारत होगा क्यूँकि धार्मिक दृष्टिकोण से देखें तो भारत हमेशा से ही इस्लामिक आतंकियों के निशाने
पर रहा है और हाल में ही अल-कायदा धमकी दे चुका है कि जल्द इराक जैसे काफिले भारत भेजे जायेंगे।

इराकी संकट से भारत को सबक सीखने की जरूर है। जहाँ तक भारतीय सेनाओं का प्रश्न है उनका छापामार युद्ध से आज तक पाला नहीं पड़ा और वो भी ऐसे से तो कभी नहीं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी ने लिट्टों के प्रश्न पर पचास हजार सैनिक जाफना प्रायद्वीप में भेजे थे लेकिन लिट्टों की छापामार युद्ध तकनीक से भारतीय सेना को बहुत हानि उठानी पड़ी थी। यह बहावी सुन्नी कट्टरपंथी छापामार युद्ध में माहिर, अति-आधुनिक हथियारों से लैस हैं और धार्मिक रूप से जन्नत जाने को लालायित है। विचारणीय प्रश्न तो यह है कि हमारी सेनाएँ कितनी तैयार हैं?

अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तो इराकी महिलाओं और बच्चों तक ने हथियार उठा लिये है, अगर भारत में कभी ऐसी कोई परिस्थिति बनती है तो हम तो वो भी नहीं उठा सकते। इराक में तो घर-घर में ऐके 47 और ACR मिल जायेंगी, जिन्हे वे बखूबी चलाना जानते हैं लेकिन हमारे यहाँ तो हथियार के नाम लाठियाँ, हाकियाँ और ज्यादा से ज्यादा देशी-तमन्चे ही मिल सकते है और रही बात हमारी पुलिस की तो वह इतनी सक्षम ही नहीं है कि एक उठाईगीरे को पकड़ ले, प्रशिक्षित आतंकियों को रोकना तो दूर की बात है।

देखा था ना 26/11 के हमले में तेरह हमलावरों के सामने भारत की तेज-तर्रार मुम्बई पुलिस घुटनों के बल रेंगती नजर आयी थी। पूरे दो दिन बाद सेना ने ही मोर्चा सम्भाला और आतंकियों को मार गिराया गया था। यही हमला अगर न्यूयार्क पर हुआ होता तो हमलावरों को अमेरिका की SWAT पुलिस ही मिनटों में धूल चटा चुकी होती, आर्मी तो दूर की बात है। हमारी पुलिस से बेहतर तो पाकिस्तान पुलिस है जिनको ट्रेनिंग आर्मी देती है और आतंकी हमले से लेकर बन्धकों को मुक्त करवाने की स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है।

खैर भारत की सुरक्षा अब जिनके हाथों में उनको भारत की सुरक्षा को लेकर चिन्ता तो करनी ही चाहिए और साथ में भारतीय सेना से घरेलू पुलिस तक को आधुनिक बनाने की जरूरत है।भारत की सुरक्षा एकमात्र सेना की जिम्मेदारी नहीं है, इसके लिए इजरायल से सबक सीखने की जरूरत है।

बीजेपी का हिंदुत्व और श्री राम जन्मभूमि का सच


हिंदुत्व के सभी मुद्दों से बीजेपी ने पल्ला झाड लिया है बीजेपी के हिन्दू कार्यकर्ताओं की मौत पर कुछ नही लेकिन पुणे में मुल्ले की मौत पर 3 लाख की घोषणा बीजेपी ने की पश्चिम बंगाल में tmc द्वारा बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चा के मुल्लो कि पिटाई के लिए कमेटी गठित क्या हिन्दुओ ने बीजेपी को वोट नही दिया है।

बीजेपी का हिंदुत्व और श्री राम जन्मभूमि का सच :-

राम के नाम परखुद को खड़ी करने वालीभाजपा को , राम का श्राप सा लग गया है। कभी भाजपा के पास हिदुत्व और भाजपा के राम दोनोहुआ करते थे। आजकुछ भीनहीं। सच तो ये है , कि ना ही कभी भाजपा के राम थे और ना हीकभी देश को जोड़ने का हिन्दुत्व। कहां से शुरू हुआ हिन्दुत्व और कैसे भाजपा कोराम का मुद्दा मिला , इसे जानने के लिये थोड़ा पीछे भाजपा का सफरनामा देखना होगा। 1951 में संघने राजनतिकपहचान बनाने के लिये भारतीय जनसंघ का गठन किया । प्रो0 मधोक, डॉ0श्यामाप्रसाद मुखर्जी और प0 दीनदयाल उपाध्याय ने संघको लोकप्रिय बनाया और प्रतिष्ठा दिलायी। संक्षेप में भाजपा के हिन्दुत्व और राम को पहचानते की कोशिश करते है। 1968 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने जनसंघ के अध्यक्ष पदकी कमान संम्भाली । लेकिन कुछसमय बाद सदिग्ध परिस्थितियों में प0 दीनदयाल उपाध्याय की मौत हो गयी । इसके बाद संघके भावनाओं के अनुरुप अटल बिहारी भाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी आये। अटल जी 1977 में जनसंघके आणवाणी काजनसंघ में वचस्व कायम हो गया, और लोगो का पार्टी में आना जाना लगा रहा। यही से शुरुआत हुआ जनसंघमें सत्ता का लोभ। फिर 1975 में आपात काल कीघोषणा के बादजनसंघ पर प्रतिबंधलगाया गया। पर संघगुप्त रुप से काम करता रहा। 1977 में आपात काल के बाद हुये चुनाव में पहली बार पार्टीसत्ता में आयी । फिर मोरार जी देसाई के कार्य काल में बवाल हुआ और जनता पार्टी की सरकार टुट गयी। फिर 1980 में भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ। संघकी स्थापना पहले ही हो गयीथी, राष्ट्रीय आंदोलन के साथ । लेकिन राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा तय नहीं हो पायी ।

बाद में यह आंदोलन साम्प्रदायिकऔर राष्ट्रवादके राहपर चल पड़ा, और संघ हिन्दुओं के नाम पर लोगो को एक करने लगा। जिसमें वहअसफल रहा । और यहां शुरु हुआ हिन्दुत्व , जिसमें संघ और भाजपा दोनो उलझ गये। लोगो को हिन्दुत्व की परिभाषा बतायीजाने लगी। हिन्दुत्व कोई धर्म नही जीवन शैली है, हिन्दुत्व राष्ट्र का प्राण है, हिन्दुत्व राष्ट्रका गौरव है, राष्ट्र की गरिमा है, हिन्दुत्व हमारा जीवन मूल्य है, हमारी आस्था है। हमारी निष्ठा है, हिन्दुत्व राष्ट्र भक्ति का पर्याय है, हिन्दुत्व का दूसरा नाम पुरुषोत्तमराम है। अब संघऔर भाजपा हिन्दुत्व में उलझ कर रहगये । क्योंकिअबतकयह समप्रदायिकता काप्रतिक हो बन चुका था, और यही से भाजपा अपने राम को निकालती है। और शुरु करती है राम जन्म भूमी आंदोलन । अब अयोध्या के राम का एक राजनीतिकरण होचुकाथा। और भाजपा के राम सच में कभी थे ही नहीं । क्योंकि यह महज राजनीति के एकहिस्सा थे क्योकि भाजपा के राम तोसिर्फराजनीति में थे।

 राम को राष्ट्रीय अस्मीता का मुद्दाबनाया गया और गली गली घूम कर भगवान श्री राम की सौगंधखायीगयी। जिसका आज की भी पता नहीं। सौगंध राम की खाते है, हम मंदिर वहीं बनायेगें।राम के नाम पर जनता को छला गया । श्री राम का नाम सुनते ही जनता में एकजूनून सवार हो गया । साराहिन्दू समाजउग्र था। अयोध्या में लोग भव्य राम मंदिर की कामनाकरने लगे । वहां एक तरफ स्वामी रामचंद्रपरमहंसथे निर्मोही अखाड़ा था ।तो दूसरी तरफ मुस्लिम वक्फ वाले । यही राजनीति रंग लाने लगी और राजनीतिक तांडव करने के लिये तैयार हो चुके थे। संघ, विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल जैसे हिन्दूवादी संगठन सक्रिय हो गये । भ्रम पैदा करने के लिये कुछ काम भी शुरु हुये। साध्वीरितम्भरा ,साध्वी उमा भारती और अन्य संत समाज से जुड़े लोग भाषण देने लगे। कुछतो राम के पुजारीथे कुछराजनीति के । पर लोग छले गये । लोग सोचे के यही असली राम भक्त है । इनके लिये मरने मारने को तैयार थे। जिसका लाभ मिला राजनीति में ।

 23 जून 1990को हरिद्घारमें सभी संत समाज ने यहफैसला लिया कि 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण शुरु होगा। भाजपा ने मौके का फायदा उठाया और इस आंदोलन में कूद गयी। और निकले एक रथ वाले बाबा , लालकृष्ण आडवाणी । जिन्होने 25 सितम्बर 1990 को सोभनाथ से अयोध्या कीयात्रा निकाली और करोड़ो के मसीहा बन गये। इधर असली राम स्नेही नियत समय में अयोध्या पहुंच कर ध्वज फहरा रहे थे। राजनीतिकअपना तवा गर्म कर रहे थे। वक्ता लोगो को शहीद करने की तैयारी कर रहे थे। दिल्ली में बैठे नेता एक अच्छा नाटक तैयार कर रहे थे। जो अयोध्याजाने के लिये शुरु होता है लेकिन गाज़ियाबादमें गिरफ्तारी के साथ ही खत्म होगया । उधर राम सेवको ने बाबरी मस्जिद विध्वंसकर दी गयी । देश में दंगा भड़क गया। और सैकड़ो निर्दोष लोग बलि चढ़ गये। लेकिन कोई नेता नहीं मारा गया, औरना ही किसी नेता ने यह स्वीकार किया की इसराम नाम में उनकी कोई भूमिका थी। अब तक जनता और राम दोनो लोग छलें जा चुके थे। क्योंकि रथयात्रा राम के नाम परलोग मारे जाचुके थे। 

तो क्या यही हिन्दुत्व था औरयही राम थे, ये तो महज वोट बैंक की राजनीति थी। जो चमक चुकी थी और हिन्दू वोट भाजपा खेमे में आ चुके थे। राम के सौगंध ने सत्ता भाजपाईयो को दे दी। पर सत्ता में आते ही भाजपा ने सबसे पहले अपना ऐजेंडा छोड़ दिया। श्री राम को भूल गयी। अनुच्छेद 370भी भूल गये । याद रहा तो सिर्फ भाजपा का झंडा जो राजद में सिमटगया था। भाजपा वाले कहने लगे मंदिर हमारे ऐजेंडे में नहीं है। जो अप्रिय होने के साथसत्य था और ये साफ हो गया । कि भाजपा के कभीराम थे ही नहीं । रथवाले बाबा यहकहना शुरु करदिये की मंदिर गिरा उसमें उनका कोई हाथनहीं था। सारे कश्मेवादे छू हो गये। अब यह तो रथ वाले बाबा ही जानेगें पर काश झूठ को झूठरहने देते ताकि लोगो की कुर्बानिया नाजायज तो नहीं जाती । अब तकयह साबित हो चुका था कि भाजपा के राम वो राम नहीं थे जिसके लिये जनता वहां गयी थी। यही कारण है कि लोगो का भाजपा से एतबार खत्म हो गया।

जहां तक श्री राम मंदिर कीबात है तो कानून कहता है कि अयोध्या में विवाद केवल 2.77 एकड़ का ही था निर्माण कार्य हो सकता था। पर सभी मुद्दे राजनीति के होके रह गये और बात करे वहां के लोगो की , तो मुस्लिम बंधुओं में तब भी कोई कटुता नहीं थी और आज भी सौहार्द है। और रही भाजपा की बात तो भाजपा को बीते कल से सबक लेना चाहिए।

Wednesday, June 4, 2014

सत्ता बदलते ही रेल भवन से 13 'गोपनीय' फाइलें गायब!

सत्ता बदलते ही रेल भवन से 13 'गोपनीय' फाइलें गायब!

देश की सत्ता बदल चुकी है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार ने कमान संभाल ली है। इन सबके बीच रेल भवन से एक चौंकाने वाली खबर आ रही है। कहा जा रहा है कि यहां विभाग से जुड़ी 13 'गोपनीय' फाइलें गायब हो चुकी हैं।

ये सब कुछ नए रेल मंत्री के कमान संभालने से पहले हुआ है। ये खुलासा अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने किया है। अखबार के मुताबिक विभाग ने गायब फाइलों को खोजने के लिए खासी मशक्कत की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

कई दिनों की तलाश के बाद भी जब फाइलों का पता नहीं चला तो विभाग ने 23 मई को इन फाइलों को गायब बताकर सभी शाखाओं को इसे तलाशने के की जिम्मेदारी सौंपी है।

रेलवे बोर्ड ने इस बाबत अधिकारियों 16 जून तक गायब फाइलों को ढूढ़ने का निर्देश दिया है। ऐसा नहीं होने की सूरत में इन फाइलों को आधिकारिक तौर पर गायब होने का ऐलान किया जाएगा।

अंग्रेजी अखबार के मुताबिक गायब सभी फाइलें इससे संबंधित विभागों के कार्यालय से गायब हुई हैं। गायब फाइलों में कई ऐसे दस्तावेज हैं जो काफी गोपनीय हैं।

जो फाइलें गायब हुई उनमें मुख्य रूप से डिविजन रेलवे मैनेजर से जुड़ी फाइलें हैं। इनमें पूरे भारत में वरिष्ठ संयुक्त सचिव कि नियुक्ति के लिए चुने गए उम्मीदवारों के नाम शामिल थे।


एक फाइल डीआरएम के नियुक्ति पर रोक से जुड़ी हुई है। इसके साथ ही बीसीसीआई से बातचीत से जुड़ी फाइल भी शामिल है। इसके अलावा बड़े स्टेशनों पर इमरजेंसी रेस्पॉन्स रूम की स्थापना से जुड़ी फाइल, वरिष्ठ अधिकारियों के तबादलों से जुड़ी फाइल भी शामिल हैं।

इनमें भिलाई स्टील प्लांट में 'फोर लेवल क्रासिंग' बनाने से जुड़ी फाइल और मुंबई रेल विकास कॉरपोरेशन से जुड़ी फाइल भी शामिल है।

हालांकि रेलवे बोर्ड से जुड़े एक अधिकारी के मुताबिक, "अगर ये फाइलें विभाग के कंप्यूटर में सेव की गई होंगी तो इन फाइलों में दर्ज दस्तावेज फिर से हासिल किए जा सकते हैं।

भाजपा ३००+ का लक्ष्य पूर्ण.......... अब नये सफर की शुरुवात...

 भाजपा ३००+ का लक्ष्य पूर्ण.......... अब नये सफर की शुरुवात...


 






अंतिम प्रहार - मिशन 2014 :::::: भाजपा 300+

एक समय आता है जब सर्प अपना केंचुली बदलते है । इस प्रक्रिया में सबसे पहले वो नयी चमड़ी तैयार करते है, जब पूर्ण रूप से अंदर की चमड़ी विकसित हो जाती फिर वो पुरानी चमड़ी को छोड़ कर नया यौवन प्राप्त करते है । पहचानने की कोशिश कीजिये ! ६६ वर्ष पुराना सांप एक बार फिर अपनी नयी चमड़ी विकसित कर चुका है ! नरेंद्र मोदी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए फेंका गया ‘आखिरी पत्ता’ हैं अरविंद! <br><br> समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध | जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध || :- गौरव,हरिद्वार

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...