Tuesday, April 8, 2014

मुस्लिम नारियों के हित में समान नागरिक संहिता

भारत की सभी मुस्लिम नारियों के हित में समान नागरिक संहिता (कॉमन सिविल कोड़) के लाभ

इस पोस्ट को अधिकाधिक मुस्लिम महिलाओ तक पहुंचा कर जनजागृति अभियान में योगदान दें :-

1. उनका पति घर बैठे तीन बार तलाक ! तलाक !! तलाक !!! कहकर पत्नी को घर से नहीं निकाल सकेगा ।
2. यदि निकाला तो हिन्दू
तलाकशुदा महिलाओं की भांति उसे एक निश्चित राशि पत्नी को देना होगी,
जो तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को नहीं मिलती ।
3. तलाकशुदा मुस्लिम महिला को मात्र मेहर मिलता है जो जीवन यापन के लिए एक दो वर्ष भी नहीं चलता ।
4. कॉमन-सिविल कोड लागू
हो गया तो पत्नी को तलाक देने के लिए कोर्ट के चक्कर लगाते - लगाते मुसलमान पुरूषों के जूते घिस जायेंगे ।
5. मुस्लिम स्त्री को आज तलाक देने का अधिकार
नही हैं । वह उसे मिल जाएगा । घुट- घुट कर
मरना नहीं पड़ेगा ।
6. मुसलमान लड़की को आज पिता की संपत्ति में मात्र एक तिहाई का अधिकार है वह बराबरी का हो जायेगा ।
7. मुस्लिम स्त्री पति द्वारा तलाक दिए जाने पर तीन माह तक इद्दत की मुद्दत
पूरी होने के बाद ही दूसरी शादी कर सकती है । कॉमन सिविल कोड लागू होते
ही पति द्वारा तलाक दिए जाने पर तुरंत विवाह कर सकेगी।
8. भूल-चुक हो जाने पर या गलती से क्रोध में पति के मुंह से तीन बार तलाक निकल जाने पर निरपराध मुस्लिम महिला पुनः अपने
पति के साथ नहीं रह सकती । उसे तीन माह बाद किसी दूसरे से निकाह
करना पड़ता है, उससे तलाक दिए जाने पर
फिर तीन माह बाद अपने पूर्व पति से विवाह कर सकती है । इस झंझट से
मुक्ति मिलेगी । बिना कोर्ट में गये तलाक मान्य नही होगा और बीच में किसी दूसरे कि पत्नी बननें और शरीर अपवित्र करने
की बाध्यता भी नहीं होगी और नए पति ने यदि तलाक नहीं दिया तो आजीवन
न चाहते हुए भी उसकी पत्नी बने रहना भी सम्भव न रहेगा ।
9. शरियत में निकाह हराम हो जाने की स्थिति में स्त्री अपने विवाहित पति के पास नहीं रह सकती उसे किसी दूसरे से निकाह कि रश्म अदा करनी पड़ती है|
10. बैंगलोर में ७००० और मुम्बई में ५००० मुस्लिम लड़किओं ने अपने क्लब बना आजीवन विवाह न करने का निश्चय कर लिया है ।
सारे संसार कि पड़ी लिखी मुस्लिम महिलायें कुंवारी रहना पसंद कर रही है ।
उन्हें शरियत से निकाह कर जीवन भर पति की गुलामी पसंद नही । कॉमन सिविल कोड से उन्हें पुरुष की गुलामी से मुक्ति मिल जायेगी ।
11. ससुर द्वारा बलात्कार किये जाने पर पति के लिए अपनी पत्नी हराम हो जाती है, वह माँ मान ली जाती है । ससुर को कोई दंड नहीं मिलता । कॉमन सिविल कोड से इस मानवताहीन प्रथा से मुस्लिम महिलाएँ मुक्त हो जायेगी ।
12. पति के कहीं खो जाने पर भी मुस्लिम महिला कहीं दूसरा विवाह नहीं कर
सकती । उसे अपने पति की ६३ वर्ष की आयु हो जाने पर ही दूसरे निकाह की अनुमति मिलती है । तब तक बेचारी स्वयं बूढी हो जाती है, विवाह व्यर्थ सा हो जाता है ।
13. आज मुसलमान अपनी अच्छी भली, सुंदर, पढ़ी-लिखी, कामकाज में चतुर,
आज्ञाकारी, इनकी पीढ़ी चलाने वाली पत्नी होते भी, दूसरी, तीसरी, चौथी पत्नी ले आता है । न पत्नी उसे रोक सकती है न न्याय व्यवस्था । 
यह सरियत का मुसलमान पुरुषों को दिया गया विशेषाधिकार है । जब कॉमन-सिविल कोड बन जाएगा तो मुस्लिम महिला सोतन की कुंठा से मुक्त होंगी उसका पति दूसरी पत्नी ला नहीं सकता ।

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