Monday, March 24, 2014

कितना बदल गया इंसान

नदी तालाब मेँ नहाने मेँ शर्म आती है,
और स्विमिँग पूल मेँ तैरने को फैशन कहते हो....

गरीब को एक रुपया दान नहीँ कर सकते,
और वेटर को टीप देने मेँ गर्व महसूस करते हो....

माँ बाप को एक गिलास पानी भी नहीँ दे सकते,
और नेताओँ को देखते ही वेटर बन जाते हो....

बड़ोँ के आगे सिर ढकने मेँ प्रॉबलम है,
लेकिन धूल से बचने के लिए 'ममी' बनने
को भी तैयार हो....

पंगत मेँ बैठकर खाना दकियानूसी लगता है,
और पार्टियोँ मेँ खाने के लिए लाइन
लगाना अच्छा लगता है....

बहन कुछ माँगे तो फिजूल खर्च लगता है,
और गर्लफ्रेँड की डिमांड को अपना सौभाग्य समझते हो....

गरीब की सब्जियाँ खरीदने मेँ इंसल्ट होती है,
और शॉपिँग मॉल मेँ अपनी जेब कटवाना गर्वकी बात है....

बाप के मरने पर सिर मुंडवाने मेँ हिचकते हो,
और 'गजनी' लुक के लिए हर महीने गंजे हो सकते हो....

किसानोँ के द्वारा उगाया अनाज खाने लायक नहीँ लगता,
और उसी अनाज को पॉलिश कर के विदेशी कंपनियाँ बेचेँ
तो क्वालिटी नजर आने लगती है....

अरे शर्म करो,
कुछ तो शर्म करो....

फैशन के नाम पर, सदियोँ से सिर्फ बेवकूफ बनते आ
रहे हो....
अगर बेवकूफी ही फैशन है,
तो ऐसा फैशन आपको ही भला हो..

स्वदेशी अपनाओ स्वदेशी!!"मोदी लाओ देश बचाओ

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