Thursday, December 12, 2013

वामपंथी विचारधारा का सच

वामपंथी विचारधारा का सच
----------------------------

1932 में रुस में पंचवर्षीय योजनाओं की शुरुआत हुई। समाजवादी पैटर्न के कारण हमने भी आंख मूदकर अपने यहां लागू कर लिया। खैर 1932 के पंचवर्षीय योजना में रुस ने कहा कि इसके अंत तक अर्थात 1936 तक रुस में हम सभी चर्च बंद करा देंगे। कारण कि धर्म अफीम की गोली है। 1937 में फिर से लिख दिया कि GOD WILL BE EXPELLED FROM RUSSIA. लेकिन रुस और चीन ने जो संविधान बनाया उसमें मौलिक अधिकारो में freedom of religion को शामिल कर दिया गया। कुछ साल पहले जो कैथोलिक चर्च के पोप हैं वह पोलैण्‍ड गये, पोलैण्‍ड एक कम्‍यूनिस्‍ट देश है जहां की आधी आबादी पोप साहब के दर्शन करने आई। संयाेग से होम टाउन सैंटो के निवासी पोप ने अपने ही देश और शहर में लोगों से कहा कि धर्म अफीम की गोली है और मनुष्‍य आर्थिक प्राणी है इसका मै तीब्र विरोध करता हूं। 

दूसरा state withers away राज्‍य तिरोहित हो जायेगा, दुनियां के मजदूर इक्‍टठा हो जायेगें कितना हास्‍यास्‍पद निकला जब चीन ओर रुस सीमा विवाद में फंसे रहे, यूगोस्‍लाविया और रुस लडते रहे, यूगोस्‍लाविया और वियतनाम गाली गलौज करते रहे, इसी तरह वियतनाम और कंबोडिया मारकाट मचाये रहे ये सभी वामपंथी थे और सभी राष्‍ट्रवादी हो गये अपने अपने स्‍वार्थ को लेकर। 

इनकी प्रमुख पुस्‍तक THE NEW CLASS, IMPERFECT SOCIETY में साफ कहा कि हमने पुराने वर्ग को तो नष्‍ट कर दिया लेकिन वर्गहीन समाज नहीं बना पाये बल्कि नये वर्ग बन गये जिनके प्रीवलेज पहले जैसे ही थे। यही बात आगे चलकर माओ भी कहता है कि yesterday revolutionaries are todays counter revolutionaries.. 

कुलमिलाकर इनके सभी कसमें वादे तो फर्जी निकले अब भारत में सिर्फ सरकार चाहे जिसकी हो दूसरे शब्‍दों में दूल्‍हा कोई भी हो बाराती बनने के लिये परेशान रहते हैं। ताकी सेकुलरीज्‍म पर हुंआ हुंआ करते रहें।

 ये वहीं लोग है जिनको पेट में दर्द है या दांत में दर्द है, ईलाज के लिये बिजींग और मास्‍को जाते हैं। चेयरमैन माओ, हमारा चेयरमैन कहते शरमाते नहीं।

 1962 के युद्ध में चीन का पक्ष लिया और अब रुस और चीन के कम्‍यूनिस्‍ट पार्टियों के टुकडों पर पलते हैं। कश्‍मीर में आतंकियों के मानवाधिकारों के सबसे बडे पैरोकार हैं और लाल क्रांति के नाम पर गरीब, निर्दोष किसानों वनवासियों की हत्‍याएं कराते हैं- करते हैं- ये हैं एलीट नक्‍सली।

ये वही लोग है जो पूरे देश में जब स्‍वदेशी आंदोलन अपने चरम पर था और लोग जगह जगह विदेशी कपडाे की होली जला रहे थे तो कम्‍यूनिस्‍ट नेता भरी गर्मी के दिनों में लंका शायर के मिलों में उत्‍पादित कपडें के सूट पहनकर घुमते थे ताकी भारत में स्‍वदेशी आंदोलन के कारण लंका शायर के मिल मजदूर बेरोजगार न हो। ये वही लोग है जो 1942 के अंग्रेजो भारत छोडो आंदोलन के दौरान महाम्‍मा गांधी को साम्राज्‍यवदियों को दलाल और सुभाष चंद्र बोस को तोजो का कुत्‍ता तक कहा।

ये वहीं लोग है जो अंग्रेजो के खुफिया एजेंट का काम किया। ये वही लोग है जो पाकिस्‍तान निर्माण के लिये सैद्धांतिक आधार देते हुए भारत को खंड खंड बाटने की बहुराष्‍ट्रीय योजना तैयार की।

ये वहीं लोग है जो सत्‍ता सुख भोगने के लिये कांग्रेस की दलाली करते आपात काल का समर्थन किया और जिनके लिये राष्‍ट्रवाद और देशभक्ति जैसे शब्‍द गाली होते हैं। कुछ तो शरम करते।

No comments:

Post a Comment

Paid मीडिया का रोल

क्या मोदी सरकार पिछली यूपीए सरकार की तुलना में मीडिया को अपने वश में ज्यादा कर रही हैं? . यह गलत धारणा पेड मीडिया द्वारा ही फैलाई गयी है ...