Friday, December 6, 2013

6 दिसंबर १९९२ हिंदू इतिहास का काला दिन है !

श्रीराम भक्त राजनीतिक अभिनिवेश से दूर रहकर इस वास्तविकता को शेअर करे !

6 दिसंबर १९९२ हिंदू इतिहास का काला दिन है !

श्रीराम जन्मभूमि मंदिर-रामकोट सम्पूर्ण परिसर 67:77 मंदिर पुनर्निर्माण अभियान के लिए आवाहन !

   श्री अयोध्यापुरी का मुख्य परिचय प्रभु श्रीराम जी के जन्मस्थल के रूप में ही,विश्व में है ! चारधाम में से एक इस पवित्रस्थल पर देश-विदेश के यात्री यहाँ श्रीराम जन्मस्थान के दर्शन के लिए आते है और उन यात्रियों के आगमन पर ही स्थानीय उद्योग, व्यवसाय,बाजार में मुद्रा आकर अनेक निवासियों का उदरभरण हो रहा है।कल्पना ही नहीं की जा सकती की यहाँ मंदिर न होता तो ? यदि यहाँ सांप्रदायिक सौहार्द के नाम पर श्रीराम जन्मस्थान को लेकर कोई राजनितिक सौदा हुवा तो,सांप्रदायिक अशांति तो फैलेगी ही हिन्दू यात्रियों का आना भी बंद हो जायेगा।

 * पर्शियन ग्रन्थ हदिका ए शहादा के लेखक मिर्झाजान ने सन 1856 में पृष्ठ 7 पर लिखा है,"अयोध्या,मथुरा,वाराणसी में हिन्दुओ की आस्था जुडी हुई है।जिन्हें बाबर के आदेश से ध्वस्त करके मस्जिदे बनाई गयी।"

* ऑस्ट्रेलियन मिशनरी जोसेफ टायफेंथालेर सन 1766-71 के बिच यहाँ घूमकर वापस लौटा तब 1785 में हिस्ट्री एंड जिओग्राफी इंडिया ग्रन्थ लिखा उसके पृष्ठ 235-254 पर लिखा है,"बाबर ने राम जन्मभूमि स्थित मंदिर ध्वस्त कर मस्जिद बनायीं,उसमे मंदिर के स्तंभों का प्रयोग किया गया है।मुसलमानों के विरोध के पश्चात् भी हिन्दू वहा पूजा अर्चना के लिए आते है।इस परिसर में राम का पालना (राम चबुतरा) पर परिक्रमा  की जाती है।देश के कोने कोने से यात्री आकर यहाँ धूमधाम से उत्सव मानते है।"

* हिस्टोरिकल स्केच ऑफ़ फ़ैजाबाद के ले.कार्नेजी सन 1870 में लिखते है,"राम जन्म मंदिर में काले पत्थर के वजनदार स्तम्भ थे।उनपर सुन्दर नक्काशिकाम किया गया था।उन्हें मंदिर गिराए जाने के पश्चात् मस्जिद में लगाया गया।" अनेक मुस्लिम विद्वानों के अनेक प्रमाण ग्रन्थ में समान विचार है।
        श्रीराम जी का जन्म अयोध्यापुरी में इक्ष्वाकु कुल के रघुकुल में हुवा।शरयु उनकी साक्ष है।इक्ष्वाकु कुल के लिच्छवी कुल में जन्मे महात्मा बुध्द अयोध्या आये थे उसका साक्षी दंतधावन कुंड है।श्रीराम पुत्र वंश के श्री गुरु नानकदेव बेदी यहाँ दर्शन,स्नान करने आये थे।श्रीराम पुत्र वंश के श्री गुरु गोबिंदसिंग जी सोढ़ी महाराज मंदिर मुक्त करने निर्मोही आखाडा के महंत श्री वैष्णवदास महाराज के आग्रह पर आये थे।अयोध्या में जन्मे चार तीर्थंकर भी इक्ष्वाकु कुल दीपक रहे है।

        23 मार्च 1528 (खैर बकी) को मीर बांकी ने बाबर के इशारे पर श्री निर्मोही आखाडा-रामघाट के पुजारी श्री श्यामानंद जी का शिर कांटकर मंदिर प्रवेश किया और मुर्तिया न मिलने पर तोप से मंदिर ध्वस्त किया। दो वर्ष चले युध्द में महताब सिंग भीटी,रणविजय सिंग,देवीदीन पांडेय,स्वामी महेशानंद और जयराज कुमारी ने बलिदान दिया।1556 से 1606 के बिच 20 बार लड़कर स्वामी बलरामाचार्य जी ने मंदिर पर कब्ज़ा बनाये रखा। औरंगजेब के कार्यकाल में 30 बार लड़कर हिन्दुओ ने मंदिर कब्जाया उनमे श्री गुरु गोबिंदसिंग जी भी एक थे। कुंवर गोपालसिंग,ठा जगदम्बा सिंग-गजराज सिंग जी ने भी प्रचंड योगदान देकर मंदिर निर्मोही के कब्जे दिया।नबाब सआदत अली के कार्यकाल में अमेटी के गुरुदत्त सिंग,पिपरा के राजकुमार सिंग ने मंदिर मुक्त कर निर्मोही को सौपा। नासिर उद्दीन हैदर के कार्यकाल में मकरही नरेश ने मंदिर अस्तित्व बनाये रखा। वाजिद अली शाह के कार्यकाल में निर्मोही आखाड़े के बाबा उध्दवदास महाराज और रामचरण दास महाराज जी ने गोंडा नरेश की सहायता से लड़कर मंदिर मुक्त करवाया। 31 मई 1855 को बहादुर शाह जफ़र के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के विद्रोह में हरिद्वार के कुम्भ में स्वामी पूर्णानंद महाराज ने शंखनाद किया तब आमिर अली की मध्यस्तता में वाजिद अली ने बाबा रामचरण दास जी से समझौता कर मंदिर की मान्यता मान ली।ब्रिटिश सरकार ने बाबा और आमिर अली को फांसी दी और वाजिद अली को पकड कर ले गए।वाजिद अली के द्वारा नियुक्त व्यवस्थापक मौलवी अब्दुल करीम " गुम इश्ते हालात ए अयोध्या" में लिखते है,राम जन्मस्थान,सीता रसोई गिराकर मस्जिद बनवाई गई थी !

       ब्रिटिश सरकार के उकसावे पर मो.अजगर ने जन्मस्थान मंदिर की दिवार में दरवाजा बनाने को लेकर 13 दिसंबर 1877 को विवाद खड़ा किया। निर्मोही आखाड़े के महंत खेमदास जी ने विरोध किया।फिर शिलालेख लगाने पर 1882 में विवाद अधिक गरमाया।ब्रिटिश सरकार ने सत्ता के लिए मुस्लिम पक्ष को बारबार सहयोग किया।इसलिए 19 जनवरी 1885 को निर्मोही अखाड़े के महंत श्री रघुबरदास महाराज ने कम से कम राम चबूतरे पर प्राप्त पूजन के आधार पर छत डालने की अनुमति मांगी।18 मार्च 1886 को कमिश्नर ऑफ़ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में की अपील पर न्या.डब्ल्यू यंग ने वास्तविकता को जाने बिना "विवादित स्थल-मस्जिद द जन्मस्थान"कहकर अपील ठुकराया। दुर्भाग्य से स्वाधीन हिन्दुस्थान के लोग उस ही बात को मान्य कर उर्वरित 1/3 भूमि कब्जाने के लिए BJP-SP-Cong. साथ मिलकर सौदेबाजी कर रहे है।
History :-
        सन 1912 का साधुओ का साथ देकर अयोध्यावासीयो ने दंगा किया।1934 गो हत्या के कारण दंगा भड़का।सन 1935 ब्रिटिश संविधान में कम्युनल एवार्ड समविष्ट हुवा।हिन्दू महासभा नेता मालवीय,मुंजे,भाई परमानंद आदियो विरोध किया परन्तु,कांग्रेस तटस्थ रही समर्थन नहीं किया।1936 को वक्फ बोर्ड का गठन हुवा।16 सप्तम्बर 1938 वक्फ बोर्ड कमिश्नर ने 'अयोध्या के मुसलमान इस विवादित वास्तु में नमाज पढ़ने के इच्छुक नहीं।' लिखा।इस बिच शहीद गंज साहिब लाहोर  गुरुद्वारा की मुक्ति के लिए अकाली नेता मास्टर तारासिंग और सरहद प्रान्त हिन्दू महासभा अध्यक्ष राय बहादुर बद्रीदास ने लन्दन प्रिव्ही कौन्सिल तक लड़कर सिक्ख-मुस्लिम-ब्रिटिश तीन जज्ज की खंडपीठ में सुनवाई करवाई।2 मई 1940 न्या.दीन महंमद ने गुरुद्वारा मुक्ति का आदेश दिया था।                 अयोध्या ही नहीं देश का श्रध्दालु हिन्दू श्रीराम जन्मस्थान की सैकड़ो वर्षो से चली निर्मोही आखाड़े की स्वामित्व की लडाई रोककर स्थायी समाधान के लिए उत्सुक था।14 अगस्त 1941 नझुल विभाग-फ़ैजाबाद ने श्रीराम जन्मस्थान रामकोट को प्लाट क्रमांक 583 वर्णन " तीन गुम्बद मंदिर " कब्ज़ा रघुनाथदास,राम सकलदास,राम सुभगदास निर्मोही आखाडा लिख दिया।क्यों की,ब्रिटिश अभिलेख में भी रामचरण दास,बलदेव दास को जन्मभूमि व्यवस्थापक और चबूतरे के मंदिर में भोग राग उत्सव की भी व्यवस्था निर्मोही आखाड़े के पास लिखित है।
     विभाजन के संकट से घाव और गहरे हुए थे और सरकार जैसे थे कहकर पाकिस्तान गए मुसलमानों को वापस बुलाकर विभाजन से शांति का परिणाम नष्ट कर रही थी।इस बिच फ़ैजाबाद मंडल हिन्दू महासभा के आयोजन में हनुमान गढी के महंत श्री रामदास जी की अध्यक्षता में सार्वजनिक जनसभा करके,"श्रीराम मंदिर पर श्रीराम भक्तो का अधिकार प्राप्त करने का संकल्प किया गया।' इस जनसभा तक कोई मुस्लिम जानबूझकर मंदिर में चप्पल जुते पहनकर आकर बैठते थे।उनके विरोध में बलप्रयोग करने की शिकायत पर डेप्युटी कमिश्नर फ़ैजाबाद रामकेर सिंग ने जिला अध्यक्ष गोपालसिंग विशारद,श्रीराम चबूतरा मंदिर पुजारी बाबा गोबिंद दास,नगर मंत्री हिन्दू महासभा के बाबा सत्यनारायण दास,बाबा यदुनंदन दास,बाबा राम टहल दास जी को बंदी बनाया।गोपालसिंग जी के अनशन की बात सुनकर अयोध्या पूरी के नगरजनो ने हड़ताल की।बाबु प्रियरंजन दास जी की मध्यस्थता तीसरे दिन सभी मुक्त हुए और मंदिर प्रांगण में जुते चप्पल पहनकर आने के लिए पाबन्दी का बोर्ड लगाया गया। अयोध्यावासीयो में उत्साहवर्धन हुवा।अखिल भारत हिन्दू महासभा के पूर्व राष्ट्रिय महामंत्री पंडित नथुराम विनायक गोडसे जी ने शरणार्थी हिन्दुओ की उपेक्षा से क्रोधित होकर बैरिस्टर गाँधी का वध किया।हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष गोपाल सिंग विशारद,जिला संयुक्त मंत्री लक्ष्मणदास शास्त्री,संघ प्रचारक विशिष्ठ धरे गए 22 मई 1948 को मुक्त होने तक मंदिर आन्दोलन ठप्प रहा।

      ओक्टोबर 1949 रजवाड़े के समक्ष हुई जनसभा में हिन्दू महासभा नेता गोपालसिंग विशारद,अयोध्या नगर मंत्री महंत परमहंसश्री रामचंद्र दास-दिगंबर आखाडा, नगर प्रचारक बाबा अभिराम दास निर्मोही अखाडा,लक्ष्मण शास्त्री तथा महाराजा इंटर कोलेज प्रा.भगीरथ प्रसाद त्रिपाठी जी उपस्थित थे। प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष गोबिंद सहाय को बाबा अभिरामदास,रामचंद्रदास जी ने श्रीराम जन्मभूमि पर बोलने का आग्रह किया।नहीं माने तो स्टेज का कब्ज़ा लेकर सहाय को भगा दिया। महंत रामदास जी की अध्यक्षता में सभा हुई,"प्राचीनकाल से श्रीराम जन्मभूमि हमारी है।वह हमारे मर्यादा पुरुषोत्तम की चिरंतन जन्मभूमि है।उसपर लुटेरे आक्रांताओ ने अमानवीय बल पर कब्ज़ा किया है,आज देश आझाद है।इसलिए यह जन्मभूमि हमें अविलम्ब वापस दी जाये।"ऐसा प्रस्ताव पारित कर उसकी प्रतिया प्रांतीय अधिकारी,विधानसभा सदस्यों को भेजी गयी।

        श्री रामायण महासभा प्रधान रामचंद्रदास परमहंस,संयुक्त मंत्री गोपालसिंग विशारद,अभिरामदास संघटक थे।इन्होने हनुमान गढी पर सार्वजानिक सभा की। प पु श्री वेदांती राम पदार्थ दास जी की अध्यक्षता में कार्तिक कृ नवमी को 108 नव्हान्न पाठ हुए,समापन में उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष महंत श्री दिग्विजयनाथ महाराज, स्वामी करपात्री जी महाराज,कांग्रेस नेता बाबा राघवदास,बड़ा स्थान के महंत श्री बिन्दुगाद्याचार्य जी महाराज,रघुवीर प्रसादाचार्य आदि गणमान्य उपस्थित थे। मार्गशीर्ष शु द्वितीय को 1108 नव्हान्न का निश्चय हुवा।जन्मभूमि मंदिर परिसर स्वच्छ करने हेतु सैकड़ो साधू और नगरजनो ने पूर्व रात्रि में मलबा हटाने औजार उठाये।निर्मोही आखाड़े के महंत बलदेवदास,जन्मस्थान महंत तथा नगर हिन्दू महासभा कार्याध्यक्ष हरिहर दास,स्वामी रामचंद्रदास नगर पार्षद हिन्दू महासभा, तपस्वियों की छावनी से अधिरिसंत दास,बाबा बृन्दावन दास,गोपालसिंग विशारद के नेतृत्व में परिसर साफ़ सुथरा हो गया।1108 की संख्या पौ फटने से पूर्व में ही पूर्ण हो गयी थी हनुमान गढी तक लम्बी कतार में बैठे लोगो में अनेक मुसलमान भी पाठ पढ़ने बैठे थे।जुहूर अहमद के नेतृत्व में के के के नायर को शिकायत कर हमारी कब्र उखाड़कर रखी कहा वहा देखने गए तो फिर नमाज की अनुज्ञा मांगी वह भी मिली 85 नमाजी पहुंचे भी वहा का माहौल देखकर मुस्लमान वापस गए।

       24 दिसंबर 1949 अखिल भारत हिन्दू महासभा का राष्ट्रिय अधिवेशन कोलकाता में हो रहा था।स्वातंत्र्यवीर सावरकर उपस्थित रहनेवाले थे।उनके कट्टर भक्त गोरक्ष पीठाधीश्वर महंत तथा उ प्र हिन्दू महासभा अध्यक्ष दिग्विजयनाथ जी महाराज के नेतृत्व में श्रीराम जन्मस्थान पर भजन-संकीर्तन हो रहे थे।दिनांक 24 की भोर में कड़ाके ठण्ड के बिच श्रीराम विग्रह का प्राकट्य हुवा।हवालदार अबुल बरकत खां प्राकट्य देखकर दंग रह गया।इस साधना में निर्मोही आखाड़े के तपस्वी सुदर्शन दास पहाड़ी,राम बिलास दास,राम सकल दास,बलदेव दास,राम चरण दास के साथ हनुमान गढी के अभिराम दास,बृन्दावन दास का योगदान महत्वपूर्ण था।
       नेहरू के आदेश पर पुलिस ने हड़बड़ी में गर्भगृह के कपाट बंद कर ताला ठोंक दिया।बाबा अभिराम दास और गुदड़ बाबा अन्दर ही अनशन पर बैठ गए।श्रीराम पूजन भोग संकीर्तन में आई बाधा के कारन संतो ने निर्णय किया की,"जब तक प्रकट श्रीराम को भोग लगाया नहीं जाता तब तक अयोध्या के किसी भी मंदिर में भोग नहीं लगेगा।कोई भोजन नहीं करेगा।" अयोध्यावासीयो के साथ भक्तों की भीड़ को देखकर नायर जी ने जिम्मेदारी के साथ साहस करते हुए " विवादग्रस्त वास्तु " घोषित कर संविधान की धारा 145 के अंतर्गत अपने कब्जे में ली और श्रीराम जी की पूजा अर्चना भोग की व्यवस्था लगा दी,परिसर में गैरहिंदू प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगाकर चार पुजारी एक भंडारी गर्भगृह में जाने की अनुमति प्रदान की।दर्शन के लिए शिकंजे से अनुमति प्रदान की।इस व्यवस्था में प्रशासन ने कोई परिवर्तन नहीं किया।

हिन्दू महासभा 1949 अयोध्या आन्दोलन के बाद से यह मंदिर न्यायालय संरक्षित है।**1950-51 हिन्दू महासभा फ़ैजाबाद जिला अध्यक्ष ठा गोपाल सिंग विशारद द्वारा चली 3/1950 न्यायालयीन कार्यवाही में अयोध्या परिसर के 17 राष्ट्रिय मुसलमानों ने कोर्ट में दिए हलफनामे का आशय, *"*हम दिनों इमान से हलफ करते है की,बाबरी मस्जिद वाकई में राम जन्मभूमि है।जिसे शाही हुकूमत में शहेंशाह बाबर बादशाह हिन्द ने तोड़कर बाबरी बनायीं थी।इस पर से हिन्दुओ ने कभी अपना कब्ज़ा नहीं हटाया।बराबर लड़ते रहे और इबादत करते आये है।बाबर शाह बक्खत से लेकर आज तक इसके लिए 77 बल्वे हुए।सन 1934 से इसमें हम लोगो का जाना इसलिए बंद हुवा की,बल्वे में तीन मुसलमान क़त्ल कर दिए गए और मुकदमे में सब हिन्दू बरी हो गए।कुरआन शरीफ की शरियत के मुतालिक भी हम उसमे नमाज नहीं पढ़ सकते क्योंकी,इसमें बुत है।इसलिए हम सरकार से अर्ज करते है की,जो यह राम जन्मभूमि और बाबरी का झगडा है यह जल्द ख़त्म करके इसे हिन्दुओ को दिया जाये।"* टांडा निवासी नूर उल हसन अंसारी की अर्जुनसिंग को दी साक्ष*,"मस्जिद में मूर्ति नहीं होती इसके स्तंभों में मुर्तिया है।मस्जिद में मीनार और जलाशय होता है वह यह नहीं है।स्तंभों पर लक्ष्मी,गणेश और हनुमान की मुर्तिया सिध्द करती है की,यह मस्जिद मंदिर तोड़कर बनायीं गयी है।"

माननीय न्यायालय का आदेश है की ,*"मेरे अंतिम निर्णय तक मूर्ति आदि व्यवस्था जैसी है* वैसे *ही सुरक्षित रहे और सेवा,पूजा तथा उत्सव जैसे हो रहे थे वैसे ही होते रहेंगे।*"
पक्षकार हिन्दू महासभा की मांग पर १९६७ से १९७७ के बिच प्रोफ़ेसर लाल के नेतृत्व में पुरातत्व विभाग के संशोधक समूह ने श्रीराम जन्मभूमि पर उत्खनन किया था। इस समिती में मद्रास से आये *संशोधक मुहम्मद के के भी थे वह लिखते है*
,"वहा प्राप्त स्तंभों को मैंने देखा है। JNU के इतिहास तज्ञोने हमारे संशोधन के एक ही पहलु पर जोर देकर अन्य संशोधन के पहलुओ को दबा दिया है।मुसलमानों की दृष्टी में मक्का जितना पवित्र है उतनी ही पवित्र अयोध्या हिन्दुओ के लिए है।मुसलमानों ने राम मंदिर के लिए यह वास्तु हिन्दुओ को सौपनी चाहिए।उत्खनन में प्राप्त मंदिर के अवशेष भूतल में मंदिर के स्तंभों को आधार देने के लिए रची गयी इटोंकी पंक्तिया,दो मुख के हनुमान की मूर्ति,विष्णु,परशुराम आदि के साथ शिव-पार्वती की मुर्तिया उत्खनन में प्राप्त हुई है।"


गैझेटियर ऑफ़ दी टेरिटरीज अंडर गव्हर्मेन्ट ऑफ़ ईस्ट इंडिया कं के पृष्ठ क्र 739-40 के ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार," 23 मार्च 1528 को श्रीराम जन्मस्थान मंदिर ध्वस्त किया और उस ही मलबे से 14 स्तम्भ चुनकर उसपर खडी की वास्तु कभी मस्जिद नहीं बन पायी क्यों की इन स्तम्भोपर मुर्तिया थी।"


न्यायालय के संरक्षण में पूजा-दर्शन हो रहे न्यायालय के आदेश से ताला खुले शिलान्यासित मंदिर को भाजप ने,हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशन चंद सेठकी सूचना का अनादर कर राजनितिक और आर्थिक लाभ के लिए बाबर का कलंक लगाया और 6 दिसंबर 1950 को मंदिर ही ध्वस्त किया ! ऐसी शिकायत भी निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट के मूलवाद पत्र 4 ए में की है।
हिन्दू महासभा और निर्मोही आखाड़े का पक्ष सुनकर उ न्या के लखनऊ खंडपीठ के विशेष पूर्ण पीठ ने 1949 हिन्दू महासभा आन्दोलन से जुडी पत्रावलिया प्रस्तुत न करने पर उ प्र अपर महाधिवक्ता को मूल रेकोर्ड प्रस्तुत करने को कहकर 14 जुलाई 2010 को सुनवाई निश्चित की थी। लिबरहान रिपोर्ट जमात ए उलेमा ए हिन्द के कार्यक्रम में गृहमंत्री को की गयी मांग के अनुसार प्रधानमंत्री को प्रस्तुत करते ही फ़ाइल गायब होने वार्ता प्रकट हुई. 14 जून 2010 को हिन्दू महासभा ने उ प्र मुख्यमंत्री को सी बी आई जाँच की मांग कर एफ आई आर के लिए सूचित किया।10 जुलाई को ए के सिंग ने हजरत गंज थाने में FIR लिखी। उ प्र सरकार ने 4 जुलाई 2010 को गृह सचिव जाविद अहमद की आख्या पर शपथ पत्र प्रस्तुत कर कहा की," 23 पत्रावलिया उपलब्ध नहीं है।विशेषाधिकारी सुभाष भान साध के पास यह फाइल थी।लिबरहान आयोग में जाते समय उनका एक्सीडेंट हुवा और मृत्यु के साथ फ़ाइल गायब हुई। " मायावती ने गायब फाइल्स की जाँच सी बी आई से करवाने की संस्तुति करते हुए यह फ़ाइल भाजप शासनकाल में गायब होने की आशंका व्यक्त की थी।

26 जुलाई 2010 को माननीय न्यायालय ने इस विवाद को अनिर्णीत रखा है। ऐसी स्थिति में 30 सप्तम्बर 2010 को न्यायालय ने शर्मा जी निवृत्त होने कारन देकर ६७ : ७७ एकड़ भूमि परिसर से भाजप सरकार ने विवादित बनाकर अधिग्रहित की २ : ७७ एकड़ भूमि का १/३ बंटवारा षड्यंत्र, राजनितिक निर्णय थोपते समय 1989 को उ.न्या.ने लताड़े पक्षों को 1/3 हिस्सा दिया।रामसखा बनकर देवकी नंदन अग्रवाल ने जो रामलला विराजमान 1/3 प्राप्त किया उस स्थानपर 1961-62 में सुन्नी वक्फ बोर्ड ने हिन्दू महासभा पर मुर्तिया रखने का आरोप लगाकर जो याचिका प्रस्तुत की थी वह स्थान निर्मोही आखाड़े का होने की साक्ष ओ पी डब्ल्यू न 1 श्री रामचंद्रदास महाराज वक्तव्य पृष्ठ क्र 55 पर तथा ओ पी डब्ल्यू न 2 देवकी नंदन अग्रवाल उपाख्य रामसखा की साक्ष पृष्ठ क्र 142 पर 26 दिसंबर 1949 को कुर्की पूर्व और पश्चात् निर्मोही आखाड़े का अधिकार मान्य करते है।


20 जून 2011 को सर्वराह्कार महंत श्री भाष्कर दास महाराज,उपसरपंच श्री दिनेंद्र्दास महाराज निर्मोही आखाडा और हिन्दू महासभा की ओर से प्रमोद पंडित जोशी-राम लोचन शरण महाराज (राजन बाबा) अयोध्या ने गायब फ़ाइल की रिकव्हरी के लिए सी बी आई जाँच के लिए मांग करते हुए संयुक्त पत्र हनुमान गढी, नाका, फ़ैजाबाद से प्रकाशित कर मुख्यमंत्री-राज्यपाल महोदय को भेजा था।पता चला है की,सुभाष भान साध को प्रिंसिपल सेक्रेटरी वी.के.मित्तल मूल प्रति लिबरहान आयोग देहली में लाते समय फोटोकॉपी बनाकर रखने की सलाह देते थे।गृह सचिव महेश गुप्ता को पता नहीं की कहा से दस्तावेज गायब हुए। साध के पिता बीर भान साध के अनुसार यह हत्या है।उनके अधिवक्ता रणधीर जैन ने दो बार याचिका लगायी परन्तु राजनितिक षड्यंत्र के अंतर्गत इस की जांच नहीं हुई और फ़ाइल न मिलने पर कोई गंभीर नहीं दिखा।मात्र मित्तल को बुंदेलखंड यूनिवर्सिटी का व्हाईस चांसलर बनाया गया है।इस हत्या के साथ 1949 हिन्दू महासभा के योगदान तथा न्यायालयीन पक्ष को दबाने का संयुक्त राजनितिक प्रयास हुवा है ! इस फाईल को निकालकर श्रीराम मंदिर पर कब्जा-धन और सत्ता की राजनीती रोकने के लिये याचिका लगाई गई है !


इसलिए बाबरी पर चले राजनितिक अभियोग को बंद कर मंदिर विध्वंस की न्यायालयीन प्रक्रिया आरम्भ करने की मांग है। पूजा दर्शन हो रहे ताला खोलकर शिलान्यास किये गए मंदिर को हिन्दू महासभा सांसद स्वर्गीय बिशन चंद सेठ के विरोध के बाद भी बाबरी का कलंक लगाने वाली भाजप ने कलंक लगाना बंद नहीं किया इसलिए ध्वंस के पश्चात् यह अभियोग श्रीराम जन्मस्थान मंदिर का ताला खोलकर शिलान्यास करनेवाली काँग्रेस ने राजनीतिक लाभ के लिये बाबरी विध्वंस पर चलाया।श्रीराम जन्म मंदिर ध्वंस कर कराची गए अडवानी ने मस्जिद ध्वंस के लिए क्षमा मांगी इसलिए 2005 में आत्मघाती हमला हुवा था।संविधान के प्रथम स्वर्ण पृष्ठ पर अंकित श्रीराम को राष्ट्रिय स्थान देनेवाली सरकार के न्यायालय ने अब्दुल बंकी मंडल को राष्ट्रद्रोह में बंदी बनाया है।

इसलिए सर्व प्रथम बाबरी विध्वंस का राजनितिक अभियोग बनाकर देश को गुमराह कर रही सरकार,इस अभियोग को मंदिर विध्वंस कहकर 6 दिसम्बर 1992 श्रीराम जन्म मंदिर ध्वन्सियो को उक्सानेवालो को "मंदिर विध्वंस के राष्ट्रद्रोही आरोप" में गिरफ़्तार करे ऐसी राष्ट्रपति महोदय के पास 17 जून 2005 तथा 30 जुलाई 2010 से लंबित इस मांग पर सरकार-राष्ट्रपति महोदय तत्काल कार्यवाही करे !

मंदिर को बाबर का कलंक लगाकर ध्वस्त करनेवाले संयोजक BJP-VHP के षड्यंत्र के अनुसार निर्मोही आखाड़े के अधिपत्य की संपूर्ण ६७ : ७७ एकड़ भूमि का विवादित 2:77 भूमि का 1/3 बंटवारा 9 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने नकारा.तत्पश्चात भी 1/3 का निर्णय बलात स्वीकार करने के लिए दबाव डालकर रामलला विराजमान विहिंप-रामसखा को एक हिस्सा; मुस्लिम पक्ष जिन्हें 1989 कोर्ट ने नकारा उन्हें दूसरा हिस्सा, बेरिकेटिंग लगाकर छोड़ने तथा आरा मशीन के पास मस्जिद निर्माण और बचा हुआ 1/3 हिस्सा निर्मोही को देकर 67:77 में से 2:77 का बंटवारा। बची 65 एकड़ भूमि से निर्मोही आखाड़े को बेदखल करने का बहोत बड़ा षड्यंत्र है। इसका विरोध करते हुए श्रीराम भक्त सम्पूर्ण भूमि 67:77 निर्मोही आखाड़े को सौपने की आग्रही हिन्दू महासभा के गैरराजनीतिक जागरण को समर्थन दे।
भाजप एनडीए नही छोडेगी और बहुमत का झासा देकर हिंदू मतो को फ्रीझ करेंगे ! श्रीराम जन्मस्थान का विवाद १८८५ से न्यायालय में है और २६ जुलाई २००९ से मालीकाना अधिकार की निर्मोही आखाडे की सुनवाई भाजप के शासनकाल २००० में गायब की गई १९४९ हिंदू महासभा आंदोलन फाइल्स के अभाव में रुकी हुई है." पार्लमेंट में अध्यादेश " त्रिशंकू सरकार लायेगी नही, ना ला सकते है. श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडे का श्रीराम जन्मस्थान पर आधिपत्य स्वीकार किये बिना मंदिर मुद्दा केवल राजनीतिक और धन उगाही का माध्यम बनाया जायेगा और उसमे यत्किंचित प्रामाणिकता नही.
६ दिसंबर १९९२ हिंदू इतिहास का काला दिन है !
* कट्टर हिंदू तथा श्रीराम भक्त राजनीतिक अभिनिवेश से दूर रहकर मंदिर बनाना है तो,श्री पंच रामानंदीय निर्मोही आखाडे का श्रीराम जन्मस्थान पर आधिपत्य स्वीकार करे, इस वास्तविकता को श्रीराम भक्तो तक पहुंचाने के लिये शेअर करे !

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