Saturday, October 12, 2013

जन गणमन किसके लिए लिखा गया था ?

जन गणमन किसके लिए लिखा गया था ?

अक्सर लोग यह सिद्ध करने में लगे रहते हैं की राष्ट्रगीत ईश्वर की स्तुति में लिखा गया था न की सम्राट की स्तुति में ,परन्तु सत्य यह कि
जन गण मन= गीत जार्ज पंचम के स्तुतिगान के रूप में लिखा गया। गुरुदेव स्वयं यह स्वीकार करते हैं कि सम्राट के आगमन के अवसर पर एक सरकारी अधिकारी ने उनसे सम्राट की प्रशंसा में एक गीत लिखने को कहा था। उन्होंने ऐसा गीत लिखने से इनकार नहीं किया था। अब आगे का कथाक्रम देखें-यह गीत 1911 में लिखा गया। यह वही वर्ष था, जिस वर्ष जार्ज पंचम अपनी महारानी के साथ भारत आए और यहां पर उनके राज्याभिषेक का दरबार सजा। यह भारत के ब्रिटिश इतिहास की एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटना थी। ठाकुर रवीन्द्रनाथ ने 27 दिसम्बर 1911 के कांग्रेस की महासभा में पहली बार यह गीत प्रस्तुत किया। अधिवेशन का यह दूसरा दिन था जो सम्राट के अभिनंदन के लिए समर्पित था। इस दिन का केवल एक एजेंडा (कार्यक्रम) था सम्राट के सम्मान में प्रस्ताव पारित करना। उसी दिन रवीन्द्रनाथ ने यह बंगला गीत प्रस्तुत किया। उस दिन सम्राट के सम्मान में एक हिन्दी गीत भी प्रस्तुत किया गया, जिसे रामभुज चौधरी द्वारा गाया गया। लेकिन अखबारों में ठाकुर के अभिनंदन गीत की ही चर्चा रही।28 दिसम्बर के स्टेट्समन में खबर छपी 'बंगला कवि बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सम्राट के स्वागत में विशेष रूप से रचित अपना गीत प्रस्तुत किया (द बंगाली पोयट बाबू रवींद्रनाथ टैगोर सैंग ए सांग कंपोज्ड बाई हिम स्पेशली टु वेलकम द इम्परर)। इसी तरह 'इंग्लिश मैन समाचार पत्र ने लिखा - कांग्रेस की कार्रवाई बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा प्रस्तुत गीत के साथ शुरू हुई जिसे उन्होंने सम्राट के सम्मान में विशेष रूप से लिखा है। (द प्रोसीडिंग बिगैन विद द सिंगिंग बाई बाबू रवीन्द्रनाथ टैगोर ऑफ ए सांग स्पेशली कम्पोज्ड बाई हिम इन आनर ऑफ द इम्परर)। एक और अंग्रेजी दैनिक 'इंडियन ने लिखा, 'बुधवार 27 दिसंबर 1911 को जब राष्ट्रीय कोंग्रेस की कार्रवाई शुरू हुई तो सम्राट के स्वागत में एक बंगाली गीत गाया गया। सम्राट और साम्राज्ञी का स्वागत करते हुए सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव भी पारित किया गया (व्हेन द प्रोसीडिंग ऑफ द नेशनल कांग्रेस बिगैन आन द वेडनेसडे 27थ डिसेम्बर 1911, ए बेंगाली सांग इन वेलकम ऑफ द इम्परर वाज संग ए रिजोल्यूशन वेलकमिंग द इम्परर एंड इम्प्रेस वाज आल्सो इडाप्टेड एनानिमसली)।वास्तव में 1911 की भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, अंग्रेज सरकार के प्रति वफादार भारतीयों का ही संगठन था। इसिलए यदि उस समय कांग्रेस ने सम्राट के अभिनंदन में प्रस्ताव पारित किया अथवा रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उनकी प्रशंसा में गीत गाया तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं। आश्चर्य की बात तो यह है कि देश जब स्वतंत्र हुआ तो इस अंग्रेज महाप्रभु की प्रशस्ति में लिखे हुए गीत को इस स्वतंत्र राष्ट्र का प्रतीक गीत बना दिया 1911 के बाद यह गीत बहुत दिनों तक ब्रह्म समाज की पत्रिका 'तत्वबोध प्रकाशिका के पन्नों में ही पड़ा रहा। टैगोर स्वयं इस पत्रिका के संपादक थे। =गीतांजलि=-जिसे नोबेल पुरस्कार मिला- में भी यह गीत शामिल किया गया, लेकिन स्वातंत्र्य आंदोलन या देश के जागरण अभियान में कहीं भूलकर भी किसी ने इसे याद नहीं किया। यदि यह देश गीत होता, तो इसकी इस तरह उपेक्षा नहीं हो सकती थी। यदि हम इसे थोड़ी देर के लिए ईश प्रार्थना ही मान लें, तो भी भारत जैसे सेकुलर देश का राष्ट्र गीत बनने लायक यह गीत नहीं था। अब बेहतर यह है कि स्वयं इस गीत की समीक्षा कर ली जाए। सारी टिप्पणियों को दरकिनार करके पाठक स्वयं अपने विवेक से यह निर्णय ले सकते हैं कि यह गीत किसके लिए लिखा गया। पांच पदों का यह पूरा गीत निम्रवत है-(1) जन-गण-मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता । पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्राविड उत्कल बंगा। विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंगा । तव शुभ नाम जागे, तव शुभ आशिश मांगे. गाहे तव जय गाथा। जन गण, मंगल दायक जय हे, भारत भाग्य विधाता। जय हे, जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे ।(2)अहरह तव आह्वान प्रचारित सुनि तव उदार वाणी . हिंदू बौद्ध सिख जैन पारसिक ,मुसलमान , क्रिस्तानी । पूरब, पश्चिम आसे , तव सिंहासन पासे। प्रेम हार हवे गाथा । जन -गण, ऐक्य विधायक जय हे , भारत भाग्य विधाता । जय हे , जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे ।(3)पतन अभ्युदय बंधुर पन्था ,युग युग धावित यात्री । हे ! चिर सारथि तव रथ चक्रे मुखरित पथ दिन रात्री . दारुण बिप्लव मांझे , तव शंखध्वनि बाजे ,संकट दु:ख त्राता । जन गण पथ परिचायक जय हे। भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे. जय, जय, जय, जय हे।(4)घोर तिमिर घन निबिण निशीथे पीड़ित , मूर्छित देसे । छिलो तव अविचल मंगल नत नयने अनिमेशे। दुह्स्वपने आतंके रक्षा करिले अंके। स्नेह मई तुमि माता । जन गण दु:ख त्रायक जय हे ,भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे।जय , जय , जय , जय हे (5)रात्रि प्रभावित उदिल रविच्छवि पूर्व उदय गिरि भाले । गाहे विहंगम पुन्य समीरण नव जीवन रस ढाले । तव करुणारुण रागे, निद्रित भारत जागे । जय , जय, जय हे जय राजेश्वर भारत भाग्य विधाता । जय हे, जय हे, जय हे।जय, जय, जय, जय हे।अब कांग्रेस के अधिवेशन का जो दिन सम्राट के अभिनन्दन के लिए नियत हो उस दिन की कार्रवाई की शुरुआत सम्राट की प्रशंसा में लिखित गीत से भिन्न किसी दूसरे गीत से कैसे हो सकती है। यहां बहुत साफ ढंग से प्रकट है कि यह 'भारत भाग्य विधाता कौन है। गीत रवीन्द्रनाथ टैगोर जैसा व्यक्ति लिख रहा हो, तो वह सस्ते कवियों की तरह प्रत्यक्ष प्रशंसापरक नहीं हो सकता। उसमें कलात्मक अर्थछटा होनी ही चाहिए, लेकिन पूरा गीत अपनी कहानी स्वयं कहने में समर्थ है। यदि पूरी कविता के प्रथम चार पदों में कोई भ्रम रह भी जाता हो, तो वह अंतिम पद में दूर हो जाता है। 1911 के दिसंबर महीने में सम्राट के अभिषेकोत्सव के अतिरिक्त ऐसा कुछ भी घटित नहीं हुआ था, जिसकी अभिशंसा में कवि कहता 'अब रात बीत गई है, पूर्व में प्रभात का सूर्य उदित हो रहा है, चिडिय़ा गा रही है और पून्य समीरण प्रवाहित हो रहा है और नया जीवन रस ढल रहा है। देश में उस समय ऐसा क्या हो गया था कि यह कवि हर्षातिरेक में प्रकृति का उत्सव गान करने लगा। अंतिम पंक्ति पूरा रहस्य खोल देती है। 'जय, जय, जय हे जय राजेश्वर का राजेश्वर शब्द शुद्ध रूप से 'इम्परर के लिए ही आया। इसमें शायद ही कोई संदेह करने की धृष्टïता करे।कैसी विडम्बना है कि यह देश मातृभूमि की वंदना बर्दाश्त नहीं कर सकता, किन्तु वह उस सम्राट की प्रशस्ति को अपना राष्टï्रगान बना सकता है, जिसने उसे गुलामी के जुए में कस रखा था। इस देश को इसमें कोई आश्चर्य नहीं। जो देश, स्वतंत्रता प्राप्ति के अगले ही क्षण, ब्रिटिश क्राउन के उसी प्रतिनिधि को अपना सर्वोच्च शासक (गवर्नर जनरल) बना सकता है, अब हमें खुद फैसला करना चाहिए कि वास्तविकता क्या है.

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