Friday, August 9, 2013

मोसाद

इजराइल भोगोलिक दृष्टि से राजस्थान से 17 गुणा छोटा है मगर राजनीतिक रूप से इतना समृद्ध है की विश्व भर के मुस्लिम आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले देश उसके नाम मात्र से कांप उठता है । उसकी एक छोटी सी इकाई है --**मोसाद**--
मोसाद का मतलब मौत. एक बार जो मोसाद की निगाह में चढ़ गया, उसका बचना मुश्किल है. मोसाद के ख़ूंखार एजेंट उसे दुनिया के किसी भी कोने से ढूंढ निकालने का दमख़म रखते हैं.
यही वजह है, कि इज़राइल की इस ख़ुफ़िया एजेंसी को दुनिया की सबसे ख़तरनाक एजेंसी कहा जाता है.
मोसाद की पहुंच हर उस जगह तक है जहां इज़राइल या इज़राइल के नागरिकों के ख़िलाफ़ कोई भी साज़िश रची जा रही हो. मोसाद का इतिहास 63 साल पुराना है.
मोसाद का हैडक्वार्टर इजराइल के तेल अवीब शहर में है. मोसाद यानी इंस्टीट्यूट फॉर इंटेलीजेंस एंड स्पेशल ऑपरेशन इजरायल की नेशनल इंटेलीजेंस एजेंसी. मोसाद का गठन 13 दिसंबर 1949 को 'सेंट्रल इंस्टीट्यूशन फॉर को-ऑर्डिनेशन' के बतौर हुआ.
इस एजेंसी को बनाने का प्रस्ताव रियुवैन शिलोह द्वारा प्रधानमंत्री डेविड बैन गुरैना के कार्यकाल में दिया गया था. उन्हें ही मोसाद का डायरेक्टर बनाया गया.
मोसाद का मुख्य उद्‍येश्य आतंकवाद के खिलाफ लड़ना, खुफिया जानकारी एकत्रित करना और राजनीतिक हत्याओं को अंजाम देना है. यह इजराइल की इंटेलीजेंस कम्यूनिटी में प्रमुख वर्चस्व रखती है. मोसाद डायरेक्ट प्रधानमं‍त्री को सीधे रिपोर्ट करता है.
मोसाद की आतंकवादियों के खिलाफ चलाई गई मुहिम का बेहतर उदाहरण 'म्यूनिख हत्याकांड' है. पश्चिम जर्मनी का म्युनिख शहर में आयोजित 1972 के ओलिंपिक के दौरान बंधक बनाये इजराइल खिलाड़ियों को छुड़ाकर पांच आतंकवादियों को मार गिराया.
फिलिस्तीन के आतंकवादी संगठन 'ब्लैक सेप्टेम्बर' द्वारा अंजाम दिए गए इस आतंकी कारनामें में शामिल उन तमाम लोगों को मोसान ने ढूढ-ढूढ कर मार दिया जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस संगठन से जुड़े थे. उन्होंने इसके लिए दूसरे देशों में घुसकर कार्रवाई की. यह एजेंसी आतंक का तब तक पीछा करती है जब तक की उसके पूरे नेटवर्क को ध्वस्त न कर दिया जाए.…………
क्या हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं हो सकता क्या ? और अगर हमारे देश में भी राजनितिक स्थायित्व आ जाये और लोग स्वार्थ छोड़ देश हित में लग जाएँ तो वो दिन दूर नहीं जब विश्व के अमीर देश यहाँ नोकरी और धंधे के लिए चक्कर लगायें ।

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