Monday, May 20, 2013

ताकि भारत के लोग कभी अपना इतिहास नही जान पाए.

1950-1960 के दशक में आपने कहानी सुनी होगी की अमरीका और रशिया के बीच अन्तरिक्ष में पहले पहुँचने का युद्ध चल रहा है. पर असल में तब कोई "अमरीकी रोकेट तकनीक" थी ही नही. द्वितीय विश्व-युद्ध के बाद अमरीका ने जर्मनी से उसके सारे प्रक्षेपास्त्र वैज्ञानिक बंदी बनाकर अमरीका बुलवा लिए, और फिर उन्हें NASA में काम पर लगवा दिया.

1960 के दशक की दौड़ अमरीका-रशिया के बीच नही, जर्मन-रोकेट-तकनीक और रशियन-तकनीक के बीच हो रही थी. परन्तु बाहर लोग सुनते थे की अमरीका ने रोकेट बनाये, जबकि सारी तकनीक जर्मनी से उठाई गई.

जर्मनी में यह तकनीक बहुत ही तेजी से बनाई थी, जिसका कारण उनका भारत से गहरा सम्बन्ध और संस्कृत में गिये ज्ञान का अध्ययन था, जिसका जर्मनी ने अपनी भाषा में अनुवाद किया. संस्कृत ग्रंथो में विमानों के Blueprints, Designs के साथ-साथ उन्हें कैसे बनाना है इसकी भी जानकारी थी. भारत पर विदेशी गुलामी होने के कारण उस समय भारत में किसी भी शोध पर प्रतिबन्ध था. भारत के सभी संस्कृत पढ़े-लिखे तज्ञ को ब्रिटेन, यूरोप लाया जा चूका था और भारत में संस्कृत पर प्रतिबन्ध लगने के साथ-साथ अंग्रेजी थोंप दी गई थी सौ-वर्ष पहले ही(1857), जिसके कारण भारतीय लोगो को इसकी कोई भनक ही नही थी की संस्कृत में क्या लिखा गया है.

इसका एक दूसरा कारण यह भी था की ब्रिटिशो ने भारत में यह सिखा दिया था स्कुलो में की दलितों को ब्राह्मणों ने बनाया, ब्राह्मणों ने भारत को लुटा. इसके कारण लोगो ने अंधे बनकर संस्कृत का तिरस्कार आरंभ कर दिया. इसमें सबसे बड़ा योगदान JNU(जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय) में पढ़े-लिखे वामपंथी हिन्दुओ का है, जिनका काम ही संस्कृत और ब्राह्मणों के विरुद्ध प्रचार करना है, ताकि भारत के लोग कभी अपना इतिहास नही जान पाए.

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