Wednesday, May 8, 2013

कर्नाटका के चुनाव से कुछ निष्कर्ष

कर्नाटका के चुनाव से कुछ निष्कर्ष :-

१- राज्यों के चुनाव में देश व्यापी भ्रस्टाचार का कोई असर नहीं होता है

२- अगर आप कितने भी इमानदार हो परन्तु आप में एका न हो तो आप को हारना ही होगा

३- जातिवाद ,धर्म को जो जितना भुना लेगा वो उतना ही फायदे में होगा

४- दोस्त कितना भी कमीना हो -उसको नहीं छोड़ना चैये बल्कि दुसरे कमीने आदमियों को भी अपना मित्र बनाना जरुरी है

५- अगर आप में एकता है -फिर आप चाहे कितने ही बड़े गुंडे हो -भ्रस्टाचारी हो -इसका कोई फरक नहीं पड़ता है


हिमाचल में कांग्रेस के वीर भद्र सिंह पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप होने के बावजूद कॉंग्रेस ने उसको मुख्यमंत्री बना दिया चुनाव जीतने के लिये और कर्नाटक में भाजपा ने हार को गले लगा लिया लेकिन लोकप्रिय नेता येदुरप्पा द्वारा किये गये भ्रष्टाचार से समझौता नहीं किया. इस से क्या नतीजा निकलता है? यही ना कि देश की जनता पूरी तरह से अपरिपक्व बुद्धी वाली है. अब यदि रिटाइर्ड जज काटजू कहते है कि भारत की 90% जनता मूर्ख है तो हम उन्हें लानत मलानत करते है. वैसे कर्नाटक के नतीजों ने यह संदेश दिया कि "अच्छाई पर बुराई की जीत"




कर्णाटक चुनाव के विश्लेषण :-
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१. ये कहना की भाजपा के भ्रष्टाचार से त्रस्त आकर मतदाताओं ने कांग्रेस को चुन लिया , एकदम बकवास है क्योंकि जिस मतदाता में इतनी अक्ल होगी वो भाजपा और कांग्रेस का अंतर भी समझता होगा

२. ये कहना की भाजपा के खराब शासन की वजह से मतदाताओं ने भाजपा को हराया, ये भी तथ्यों से साबित नहीं होता , नंबर कहते हैं की भाजपा और कांग्रेस के बीच के वोट प्रतिशत का पूरा अंतर येदुरप्पा ने खाया है , जिससे तो ये सिद्ध हुआ की जनता ने जिस व्यक्ति का बुरा शासन था उसी को वोट कर दिया ?

३. तथ्य नंबर २ के हिसाब से अगर भाजपा और येदुरप्पा साथ होते तो अथाह भ्रष्टाचार और खराब शासन के बावजूद भी भाजपा ही जीतती
४. तथ्य नंबर २ से ही ये सिद्ध भी हो गया की कर्णाटक की जनता भीषण जातिवाद से ग्रसित नज़र आती है , जिसके आगे सारे मुद्दे गौंड हो जा रहे हैं

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