Thursday, March 28, 2013

चारा भाईचारे का

चारा भाईचारे का

एक मानव जात दूसरी मानव जात को कैसे हॅन्डल करती है, कैसे बेवकूफ बनाती है, जुठ का पूलिन्दा खोलकर कैसे हरा देती है ये बात आज हम जान चुके हैं । मानव की शातिर जातियां भोली जातियों को कभी जीतने नही देगी । भोली जातियों का भोलापन दूर करने के अलावा हमारे पास जीतने का कोइ रास्ता नही बचा है ।
भारतिय दर्शन में प्रेम और विश्वास बहुत बडी चीज मानी जाती है । यही प्रेम और विश्वास का फायदा उठाकर शातिर लोग हमे प्रेम से मार रहे हैं और विश्वास भी दिलाते हैं की हम आप को नही मार रहे हैं, जो कर रहे हैं आप के भले के लिए हैं, तो हम विश्वास कर लेते हैं  । [1] भारत की जनता को प्रेम के बदले लडना सिखना होगा, विश्वास के बदले शक करना सिखना होगा । जुठला दो वो धर्म जो शक को बूरा समजता हो । शक ही वो उर्जा है जो आदमी को बात की गेहराई तक ले कर जाती है । उन को जरूर तमाचा मारो जो सत्य अहिन्सा के नाम पर तमाचा खाने को सिखा रहा हो । जब दुश्मन जुठ की दुकान खोल कर बैठ जाते हैं वहां सत्य से सिक्के से कुछ नही मिलता । खास कर हिन्दुओं को भाईचारे नाम का चारा डाल के बडा भाई बना दिया जाता है और बडा भाई छाति फुला के चने के झाड पर चड जाता है, अपने अंदर या बाहर अपना जो कुछ है उस का परित्याग कर देता है । अपनो को ही घोखा देना सिख जाता है, दुश्मन के खेमों मे जा बैठता है ।
इन शातिर मानवों की इल्लुमिनिटीने मुस्लिम ब्रधरहुड को एक चालाक भर्ती एजेंट के रूपमे उपयोग किया है जो अपने  समाज को उकसा कर गैरकानूनी काम करने के लिए गुट खडा करता है और युवाओं की भर्ति भी  करवाता है । हाथमें बंदुक लिए, सबसे निचली रैंक वाले लडाके  ईमानदारी से मानते ​​है कि वे इस्लाम का बचाव कर रहे हैं, और “पश्चिमी साम्राज्यवाद” सामना कर रहे हैं । लेकिन सिर्फ उपर की रैंकवाले सरगना ही जानते हैं असली बात क्या है ।  इन विभिन्न आतंकवादी समूह, विभिन्न गुट इल्ल्युमिनिटी के बडे नेट-वर्क का हिस्सा मात्र है । जब हम आतंकवादियों के राजनीतिक और वित्तीय कनेक्शन का पता लगाते हैं तो पता चलता है कि ये सिर्फ स्वच्छंद कट्टरवाद, अलगाव जैसे ही काम नहीं कर रहे हैं, बल्की उनकी नेतागीरी, इल्लुमिनिटी की चैनलों द्वारा ब्रिटिश और अमेरिकी सरकारों में सत्ता के ऊपरी पद पर घुस जाती है, अंडरवर्ल्ड के बादशाहों से दोस्ति कर के उनके धंधे के भागीदार बन जाती हैं ।
असली मुस्लिम भाइ वो है जो कत्ल के धंधे से अपना हाथ कभी गंदे नही करते । मुसलमानों में जो अपना हाथ गंदा करते हैं वे हैं गोपनीय बैंकर्स और फाइनेंसर्स जो पर्दे के पीछे खडे हैं, वो है पुराने अरब, तुर्की, फारसी परिवारों की वंशावली  जीनकी वफादारी ब्रिटन के ताज के साथ है, इन में वे अभिजात वर्ग है जो युरोपियन ब्लेक नोबेलिटी के सदस्य हैं और  व्यवसाय के लिए कंपनियां और खुफिया संगठन चलाते हैं ।
और मुस्लिम ब्रधरहुड का दूसरा नाम पैसा भी है । ब्रधरहुड के पास डॉलर  का ढेर और तत्काल केश की जा सके ऐसी तरल संपत्ति है जीस से डे टु डे कामकाज में बाधा ना आये । इस लिक्विडिटी के जरिये ओइल बिजनेस से ले कर बैंकिंग,  ड्रग, अवैध हथियारों की बिक्री, सोने और हीरे की तस्करी जैसे काम भी कर लेते हैं । मुस्लिम ब्रधरहुड के साथ गठबंधन करके, एंग्लो अमेरिकिन आतंकवादी को किराये पर खरिदने का रैकेट चलाते, और जहां वो चाहते हो उस देश में आतंकी घटना करवा देते हैं ।
रोनाल्ड रीगन ने 1981 में अमेरिकी उद्देश्य को अफगानिस्तान से जोड दिया, क्योंकि यह अनुमान लगाया गया था कि कोई कम से कम 150,000 से अधिक प्रशिक्षित और अच्छी तरह से सुसज्जित एक मुजाहिदीन लडाकों का दल बनाया जाना चाहिए, जीस से अफगानिस्तान में युद्ध के बाद भी आतंकी कारवाईयां या युद्ध भड़काने के लिए इस्तेमाल किया जा सके, आतंकवादियों के एक अंतरराष्ट्रीय पूल बना कर अपने indoctrinating ( inculcating ideas, attitudes, cognitive strategies )  के उद्देश्य पार लगा सकें । विल्लियम केसीने सी.आई.ए की मदद से और ब्रधरहूड के माध्यम से भर्ति के लिए मोहीम चलाई । अफघानिस्तान से तडिपार या भागे हुए लोगों का युरोपमें बसा हुआ समुह, उत्तरी आफ्रिका, इस्लामी दुनिया के अन्य भाग, और अमेरिका में अफगान निर्वासन समुदायों से संपर्क कर के भर्ति के लिए मनाया गया । कुछ हजार मुजाहिदिनो से कुछ नही होना था तो भर्ती बढाने के लिए दुनिया के सभी भागों से मुसलमानों को आकर्षित करने के लिए मदरेसाओं में जिहाद सिखाया जाने लगा ।
इस दौरान मुजाहिदिनो के इस समुह को “फ्रीडम फाईटर” माना गया लेकिन इल्लुमिनिटी को अंतरराष्ट्रीय आतंकियों की एक सेना बनाने का मौका मिल गया, बादमें उन के कार्यों की दिशा बदलनी थी । १८वीं सदी में कुटिल अंग्रेजों द्वारा बनाया गया इस्लाम का कट्टर संस्करण काम मे आ गया । इस गुप्त ओपरेशन का खर्च अपने सह षड्यंत्रकारी लंदन और अमरिका की ओर से साउदी अरबने किया ।
साउदी राजा फहद को मनाने के लिए बी.सी.सी.आई के मेच रख्खे गये, मेच के माध्यम से मुजाहिदीन के समर्थन के लिए अमेरिकन डॉलर जुटाये गये । आतंकवादी मौलवियों और कट्टरपंथी जनता के बीच सभाएं भरने लगे । धनी नागरिक भी आतंकवादीयों को मदद देने के लिए प्रेरित हो गये । आए.एस.आई ने प्रिंस तुर्की अल फैसल को अफघानिस्तान के युध्ध की बागडौर अपने हाथ में लेने की सलाह दी थी लेकिन साउदी ने राज परिबार से निकट संबंध रखनेवाले एक धनी परिवार के एक आदमी को सर पर पगडी बांध कर पाकिस्तानी सीमा पर भेज दिया । वो चिल्लने लगा “”अल्लाह आपके साथ है ” वो था ओसामा बिन लादेन ।
ओसामा जब नये रंगरूटों को तालीम दे रहा होता था तब शेख अब्दुल्ला आझमने सिखाई बातें बताता था । इस्लामी शब्द जिहाद का उपयोग कर के सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिकी हितों की सेवा करने के लिए अपने लडाकों को  प्रेरित किया ।
कोलंबिया विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर बार्नेट आर रुबिन कहते हैं “स्रोतों ने उनसे कहा है कि अब्दुल्ला आझम सीआईए द्वारा आयोजिक ” था । [2] फिलिस्तीन में जन्मा ये शिक्षक मुस्लिम ब्रधरहुड का सक्रिय सदस्य है । वह मोहम्मद कुतुब की सिफारिश से सऊदी अरब के किंग अब्दुल अजीज विश्वविद्यालय से जुडा हुआ था ।
इजिप्त के राष्ट्रवादी नेता नासिर जब ब्रिटन और अमरिका से लोहा ले रहे थे तब इजिप्त विरोधी गतिविधियो की वजह से मोहम्मद कुतुब को कैद कर लिया था । [3] सी.आई.ए और मुस्लिम ब्रधरहूड को देश से भगा दिया था । नासिर के बाद सदात ने सी.आई.ए और मुस्लिम ब्रधरहूड दोनों को आमंत्रित कर दिया ।  सी.आई.ए ने मोहम्मद कुतुब को जेल से निकाल कर साउदी भेज दिया, वो वहां की युनिवर्सिटी में विभिन्न पदों पर रहते हुए मुस्लिम ब्रधरहुड के पाठ पढाता रहा ।
बिन लादेन का परिवार कंस्ट्रक्शन कंपनी चलाता है । अति धनवान है । दुनिया के अति धनवान दबाव मे या कोइ बडी लालच में आ कर सी.आई.ए के फंदेमें आ जाते हैं और वो अमरिकी हितों को ध्यानमें रखकर कार्य करने लगते हैं, अपना सारा धन अमरिकी एजंडे को सफल बनाने के लिए अर्पण कर देते हैं । वोरन बफेट, फोर्ड, बील गेट जैसे सेंकडों अमरिकियों के साथ साथ भारत के धनपति भी अपना धन अमरिकी एजंडे को दे रहे हैं । बिन लादेन परिवार भी ऐसा करे तो किसी को अचरज नही होना चाहीए । लादेन ने अपनी लडाई में अपने ही परिवार का बहुत सा धन फुंक डाला है ।
ओसामा को गाईड करने के लिए आई.एस.आई ने सिनियर बुश (उस समय खुफिया तंत्र का चीफ था) के आशिर्वाद से पाकिस्तान के पेशावर में “मकतब अल खिदमत” (Mujahideen Services Bureau) की स्थापना की । उसे पाकिस्तान के मुस्लिम ब्रधहुड, जमात – ए – इस्लामी के साथ जोड दिया, जो जिहादियों की भर्ति करता था ।
अस्सी के दशक के आखिर में “मकतब अल खिदमत” के सेंटर दुनियाभर के ५० देशों में खूल गये थे, जीस के जरिये अफघानिस्तान की लडाई के लिए दुनिया भर से जिहादीयों को भर्ति कर के एक मजबूत सेना खडी कर दी । जब आझम और बिन लादेन को लगा लडाकों को ट्रेनिन्ग की जरूरत है तो पेशावर में रहते सी.आई.ए के मुखिया के मार्गदर्शन में “बैत अल अन्सार” या “अल कायदा” नाम से ट्रेनिन्ग सेन्टर बनाये ।
१९८६ में ओसामा को नकली नाम “टीम ओसामा” दे कर अमरिका ले जाया गया । वहां एफ.बी.आई के सिनियर्स, प्रेसिडेन्ट रेगन के सिनियर साथी मिले और आगे की योजनायें समजा दी गई ।
लादेन को ऐसी सर्फेस-टु-ऐर स्ट्रिन्ग मिसाई भेजी गयी जीसमें ऐसे डिवाईस थे जब अमरिकी विमान सामने आता है तो काम ना कर सके । सोवियेत और दुसरे विमानों के लिए ही बनी थी ।
“अन होली वॉर” के लेखक रिटारर्ड पत्रकार जोन कुली कहते हैं की आतंकवाद को साथ देने के लिए उच्च कक्षा की तालिम खूद अमरिकामें दी जाती रही है । रायफल की ट्रेनिन्ग “हाई रॉक गन क्लब में, टेक्निकल ट्रेनिन्ग सी.आई.ए के वर्जिनिया के केम्प “ध फार्म” में, जहां निगरानी, काउन्टर निगरानी, काउन्टर आतंकवाद और अर्द्ध सैनिक बलों का संचालन जैसे विषय सिखाये जाते हैं ।
१९८७-८९ के दरम्यान, जेद्दाह के अमरिकन विजा ब्युरो में काम कर चुके माईकल स्प्रिन्गमेन ने बीबीसे से कहा था “ साउदी में अन्जान लोगों को विजा देने के लिए हमारे हेड मुझ पर दबाव डालते रहते थे । वो ऐसे लोगों को विसा दिलाना चाहते थे जीस का ना साउदी मे कोई लिन्क मिलता था ना अपने देश का । मै ने यहां, वोशिन्गटन में इन्स्पेक्टर जनरल से शिकायत की, डिप्लोमेटिक सिक्युरिटी से बात की लेकिन मुझे इग्नोर कर दिया । मैं क्या कर रहा था, ऐसे लोगों को विजा दे रहा था जो सी.आई.ए और बिन लादेन द्वारा भर्ति किए हुए आदमी थे जो अमरिका ट्रेनिन्ग लेने जा रहे थे सोवियेत के साथ लडने के लिए ।
1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर बमबारी को ध्यानमें रखते हुए हजारों संदिग्ध आतंकवादियों को राउंड अप से अंदर कर दिये । उनमें एक उमर अब्ब्दूल रहमान भी था जो अंततः न्युयोर्क के स्थलों को उडाने की साजिश का दोषी पाया गया । रहेमान का इजिप्शयन बोडीगार्ड और ट्रायल का प्रमुख गवाह एमद सलेम, एफबीआई का मुखबिर था । ट्रायल के दौरान पता चला की एफ.बी.आई ने इसे आधे से एक मिल्यन डोलर दे दिये हैं उस की सेवा के बदले । सलेम ने गवाही दी है कि एफबीआई इस हमले के बारे में पहले से जानता था और उसे बताया कि वे इस विस्फोटकों में हानिरहित पाउडर का उपयोग करने वाले हैं । हालांकि इस प्लान को एफ.बी.आई के सुपरवाईजर ने अटका देना चाहा था लेकिन बोम्बिन्ग अटका नही पाया ।
२००१ मे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर प्लेन द्वारा किया हमला भी बुश तंत्र द्वारा प्रायोजित ही था वो बात जग जाहिर हो चुकी है । [4]
आतंकवादियों को आमंत्रित कर के अपने ही देश की संपत्ति को नूकसान पहुंचाना और नागरिकों को मरवाने के पिछे कोइ बडा कारण ही होता है । युएन के काफी सारे एजन्डे इसमे समा गये थे ।
नेट से कुछ सवाल मिले थे जवाब देने की कोशीश मात्र की है । हकिकत कुछ और हो सकती है ।
1)  फ्रांस : ‘मुस्लिम मौलानाओं के देश में आने पर रोक,  नमाज पे पाबंदी
फ्रान्स और युरोप में हमारे बन बैठे मालिक शारीरिक रूप से रह रहे हैं, उन की जान किमती है । आंतरिक सुरक्षा के झंझटमें नही पडना है । उन देशों मे आतंकवाद फैलाना नही चाहते । लो ग्रेड के आतंकियों को मालुम नही होता है की यही लोग हमारे मालिक है, नूकसान कर सकते हैं ।
2) बुर्का, हिजाब और नकाब पहनने पर फ्रांस, कॅनडा में पाबदी
सुरक्षा का मामला तो है साथमें मुस्लिम प्रजा को चिडाने का भी बहाना है ताकी कोइ हरकत करे तो उस का दमन किया जा सके ।
3) चीन में बच्चे और सरकारी अधिकारी कों मस्जिद मे प्रवेश पे पाबंदी, रमजान के रोजा इफ्तार पर प्रतिबन्ध लगा दिया हैं ।
चीन की सेन्सरशीप और अलग भाषा के कारण वहां के नागरिकों की सही आवाज हमतक नही पहुंचती है । अगर ये बात सच है तो चीन आतंकवाद का सही विरोधी है, भारत की तरह आतंकवाद का नकली विरोधी नही है ।
4) जापान में मुस्लिम आबादी और मस्जिदों की संख्या नगण्य
जापान की जनता बुध्दिमान रही है । उनका असली धर्म मेहनत है ।
5) आतंकवाद के केन्द्र पाकिस्तान,अफगानिस्तान, इराक और लीबिया पर अमेरिका, ब्रिटन और इस्राइल के हवाई हमले
इसे अमरिका की काउंटर मिलिटन्सी कहना ही ठीक है । अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जीत कर अपने मोहरे को गद्दी पर बैठा दिये हैं । इस्राइल की स्थापना और उसका सशक्ति करण मुस्लिम देशों के खात्में के लिए ही किया गया है । अब जो हवाई हमले हो रहे हैं वो अमरिका का इस क्षेत्रमें बने रहने का बहाना है और आतंकियों के खात्में का जुठा बहाना निकाल कर युएन का डिपोप्युलेशन का एजंडा-२१ लागू कर रहा है ।
6) मुस्लिमो कों अमेरिका का वीजा मिलना हुआ बहुत मुश्किल
अभी मुश्किल है तो छुट जल्दी मिल जायेगी । अमरिका में इन्टर्नल सिक्युरिटी मजबूत है । और अमरिकी प्रजा को तोडने के लिए आतंकियों की जरूरत भी है । हमारे बन बैठे मालिकों के लिए अंडरग्राउंड घर बना लिये गये हैं, थोक के हिसाब से कोफिन का उत्पादन शुरु करवा दिया है, कैदियों के लिए बडे बडे केंप भी बना लिए गये हैं । नजदिक के भविष्य में अमरिका आग का गोला बनते देखा जायेगा ।
इन सवालों का कोइ मतलब नही रहा है । सवाल के बदले जवाब में उपाय ढुंढना है । सवाल हम उन लोगों से कर बैठते हैं जो इन सारी बातों के जिम्मेवार है जीसमें से ये सवाल निकलते हैं ।
फिर भी कुछ सवाल मुस्लिम जनता के लिए ।
(१) क्या आप को मालुम है १८वीं सदी में कुटिल अंग्रेजों द्वारा बनाया गया इस्लाम का कट्टर संस्करण क्या है ?
(२) दुनिया के बन बैठे मेसोनिक यहुदी और इसाई और सब धर्मों की मेसोनिक धनी प्रजा आप को एक किलर वायरस की तरह उपयोग करते है,खूद भी मरो और दूसरों को भी मारो ?
(३) आप के उपरी नेताओं की असलियत जानने की कभी कोशीश की है ?
(४) मुस्लिम देशों में, मुस्लिम प्रजा के उपर ही, मुस्लिमो द्वारा क्यों हमला होता है कभी सोचा है ?
(५) और आखिर में इल्ल्युमिनिटी के बारेमें जानते हो ?

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