Sunday, March 17, 2013

पश्चिमी सभ्यता का ज्ञान


आज जो पश्चिमी सभ्यता का ज्ञान हमे समझाया जा रहा है वह आयातित है | मै एक टीवी चैनेल पर महिलाओ से सम्बंधित बन रहे कानून के बारे में एक महिला वकील के तर्क सुन रहा था जिसमे महिला बता रही थी की महिलाओ से सम्बंधित सभी कानूनो का आधार यही है की महिला के शरीर पर केवल उसका अधिकार है | वह इसका जो चाहे करे | इसका अर्थ यह हुआ की सारे कानूनो की नीव ही गलत आधार पर टिकी है | यह कैसे संभव है | क्या वेश्यावृत्ति व आत्महत्या अपराध नहीं ?
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, स्त्रिी व पुरुष दोनों ही मानव जाति के अंतर्गत आते है | मनुष्य ने ही परिवार की एक इकाई का निर्माण किया है, इन इकाईयों के द्वारा ही समुदायों या जाति का निर्माण हुआ | इसका वृहतर फैलाओ समाज कहलाया | स्त्रिी व पुरुष कोई अलग जाति नहीं है, सर्वप्रथम मानव है | हमने इसे अलग रूप दिया हुआ है | हिंदू अध्यातम इसकी पहचान एक रूप में करता है, इनमे एक ही परमात्मा का अंश है |
चाहे स्त्रिी वा पुरुष दोनों के शरीर पर राष्ट्र व समाज का अधिकार है | उनके शरीर की रक्षा करने का दायित्व राष्ट्र व समाज का है | अगर उनकी रक्षा करने में राष्ट्र को चलाने वाले या समाज को धारण करने वाले अक्षम है तों यह उनका कसूर है ना की स्त्रिी व पुरुष के संबंधो का | इसी प्रकार हमारे शरीर का भी राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है | इस शरीर के द्वारा हमे हमेशा राष्ट्र की उन्नति के लिये प्रयतन शील रहना चाहिए |
अगर स्त्रिी व पुरुष के संबंधो को पश्चिमी परिपेक्ष में रखे तों हम देखते है उसमे WIFE है | जिसका अर्थ है - Wonderful Instrument For Enjoy | हमारे यहाँ शब्द है पत्नी, यानि पति का पतन होने से रोकने वाली | विवाह के बाद पति-पत्नी के संबंधो की हमारी धार्मिक व्याख्या ही इस संसार के पतन को रोक सकती है | हमे पति पत्नी का धर्म समझाते हुए कहा गया है की वे एक दूसरे के पूरक बने | गृहस्थ जीवन के द्वारा धर्म को धारण करते हुए सम्पूरण संसार को सुख शांति का मार्ग दिखाए | अपनी संतानों का उचित लालन पालन करे व उन्हें अच्छी शिक्षा दे , धीर व वीर बनाये | अगर और आगे बढे तों विषय बड़ा व्यापक हों जायेगा | अंत: - भागवत में कथा आती है के श्री शुकदेव जी जैसी ब्रहम दृष्टि का निर्माण करो जिन्हें स्त्रिी व पुरुष के शरीर का भान तक नहीं था |
आज जो पश्चिमी सभ्यता का ज्ञान हमे समझाया जा रहा है वह आयातित है | मै एक टीवी चैनेल पर महिलाओ से सम्बंधित बन रहे कानून के बारे में एक महिला वकील के तर्क सुन रहा था जिसमे महिला बता रही थी की महिलाओ से सम्बंधित सभी कानूनो का आधार यही है की महिला के शरीर पर केवल उसका अधिकार है | वह इसका जो चाहे करे | इसका अर्थ यह हुआ की सारे कानूनो की नीव ही गलत आधार पर टिकी है | यह कैसे संभव है | क्या वेश्यावृत्ति व आत्महत्या अपराध नहीं ? 
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, स्त्रिी व पुरुष दोनों ही मानव जाति के अंतर्गत आते है | मनुष्य ने ही परिवार की एक इकाई का निर्माण किया है, इन इकाईयों के द्वारा ही समुदायों या जाति का निर्माण हुआ | इसका वृहतर फैलाओ समाज कहलाया | स्त्रिी व पुरुष कोई अलग जाति नहीं है, सर्वप्रथम मानव है | हमने इसे अलग रूप दिया हुआ है | हिंदू अध्यातम इसकी पहचान एक रूप में करता है, इनमे एक ही परमात्मा का अंश है | 
चाहे स्त्रिी वा पुरुष दोनों के शरीर पर राष्ट्र व समाज का अधिकार है | उनके शरीर की रक्षा करने का दायित्व राष्ट्र व समाज का है | अगर उनकी रक्षा करने में राष्ट्र को चलाने वाले या समाज को धारण करने वाले अक्षम है तों यह उनका कसूर है ना की स्त्रिी व पुरुष के संबंधो का | इसी प्रकार हमारे शरीर का भी राष्ट्र के प्रति कर्तव्य है | इस शरीर के द्वारा हमे हमेशा राष्ट्र की उन्नति के लिये प्रयतन शील रहना चाहिए | 
अगर स्त्रिी व पुरुष के संबंधो को पश्चिमी परिपेक्ष में रखे तों हम देखते है उसमे WIFE है | जिसका अर्थ है - Wonderful Instrument For Enjoy | हमारे यहाँ शब्द है पत्नी, यानि पति का पतन होने से रोकने वाली | विवाह के बाद पति-पत्नी के संबंधो की हमारी धार्मिक व्याख्या ही इस संसार के पतन को रोक सकती है | हमे पति पत्नी का धर्म समझाते हुए कहा गया है की वे एक दूसरे के पूरक बने | गृहस्थ जीवन के द्वारा धर्म को धारण करते हुए सम्पूरण संसार को सुख शांति का मार्ग दिखाए | अपनी संतानों का उचित लालन पालन करे व उन्हें अच्छी शिक्षा दे , धीर व वीर बनाये | अगर और आगे बढे तों विषय बड़ा व्यापक हों जायेगा | अंत: - भागवत में कथा आती है के श्री शुकदेव जी जैसी ब्रहम दृष्टि का निर्माण करो जिन्हें स्त्रिी व पुरुष के शरीर का भान तक नहीं था |

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